Monday, February 28, 2011

विलुप्त कोरकू जनजाति की लक्ष्य पूर्ति के लिए धड़ल्ले से हो रही नसबंदी कोरकू बाहुल्य भीमपुर ब्लाक में पूरे नर्मदापूरम संभाग में नम्बर वन







विलुप्त कोरकू जनजाति की लक्ष्य पूर्ति के लिए धड़ल्ले से हो रही नसबंदी
कोरकू बाहुल्य भीमपुर ब्लाक में पूरे नर्मदापूरम संभाग में नम्बर वन   
बैतूल,रामकिशोर पंवार: भारत की विलुप्त होती अनुसूचित जनजातियों में कोरकू जाति का भी उल्लेख किया गया है। कोरकू अनुसूचित जनजाति समुदाय मुख्य रूप से महाराष्ट्र के मेलघाट इलाके में पूर्व (खंडवा और बुरहानपुर) निमाड़, बैतूल और मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती हैं। यह महान मुंडा जनजाति की एक शाखा हैं। महान जनजाति-गोंड शुरू में नदी तापती के दोनों किनारों पर सतपुड़ा पर्वतमाला के जंगलों में एक शिकारी समुदाय के रूप में निवास करती है। घास और लकड़ी की बनी झोपडिय़ों के छोटे समूहों में जनजाति सदियो से रहती चली आ रही है। वर्ष 1981 की जनगणना के अनुसार पूरे प्रदेश में मात्र 66 हजार 781 कोरकू जनजाति के लोग शेष बचे थे जिसमें 46.42 प्रतिशत कार्यकर्ता हैं. इनमें से 48.38 प्रतिशत किसान हैं, 46.47 प्रतिशत कृषि, 2.30 प्रतिशत पशुओं, मछली पकडऩे के वानिकी, पालन, आदि शेष 2.85 प्रतिशत में लगे हुए हैं मजदूर हैं खनन और उत्खनन, घरेलू उद्योगों, निर्माण, व्यापार के रूप में विभिन्न अन्य व्यवसायों में लगे हुए हैं और वाणिज्य, आदि वे केवल 6.54 प्रतिशत की साक्षरता दर हासिल कर पाई हैं। साक्षरता का प्रतिशत भी कम चौकान्ने वाला नहीं हैं। इस समाज के मात्र 11.68 प्रतिशत पुरूष तथा 1.24 प्रतिशत महिला साक्षर है। अशिक्षा के अभाव के कारण इस भोली भाली अनुसूचित जनजाति के लोगो की बैतूल जिला प्रशासन के स्वास्थ विभाग द्वारा मात्र लक्ष्य पूर्ति के लिए धड़ल्ले से नसबंदी की जा रही है। कोरकू जनजाति बाहुल्य बैतूल जिले में इस समय कालापानी के नाम से मशहूर आदिवासी ब्लॉक भीमपुर में परिवार नियोजन को अपनाकर लक्ष्य हासिल करने ब्लॉक को अव्वल नम्बर पर हंै। ब्लॉक में 31 मार्च 2011 के लिए निर्धारित नसबंदी ऑपरेशन का लक्ष्य 20 जनवरी को पूरा हो चुका है। भीमपुर सहित प्रदेश के सिर्फ दो ब्लॉक ही इस अवधी में सौ फीसदी लक्ष्य हासिल कर पाए है। विकास और भौगोलिक संरचना की विषमताओं की वजह से आदिवासी ब्लॉक भीमपुर को कालापानी के नाम से जाना जाता है। बावजूद इसके क्षेत्र के तथाकथित आदिवासी अब जागरूक हो रहे है। बीएमओ डॉ रजनीश शर्मा ने बताया कि परिवार नियोजन के लिए शासन ने वर्ष 2010-2011 को परिवार कल्याण वर्ष घोषित किया था जिसके तहत भीमपुर ब्लॉक को एक अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2011 तक 1430 नसबंदी ऑपरेशन कराने का लक्ष्य मिला था। कोरकू बाहुल्य आदिवासी अंचल ने इस तथाकथित लक्ष्य को ढाई माह पहले ही हासिल कर लिया है। ब्लॉक में 20 जनवरी तक आयोजित 37 शिविरों में कुल 1448 नसबंदी ऑपरेशन हुए है। जिनमें 1391 महिलाएं एवं 57 पुरूष शामिल है। परिवार नियोजन भोपाल एवं नर्मदापुरम् संभाग में अव्वल आने पर भीमपुर ब्लॉक को पुरस्कार और प्रशस्तिपत्र से नवाजा गया है। सवाल यह उठता हैं कि पूरे संभाग में प्रथम आने वाले कोरकू अनुसूचित जनजाति बाहुल्य बैतूल जिले के भीमपुर विकास खण्ड में कोरकू को छोड़ कर अन्य आदिवासी का प्रतिशत नगण्य हैं। ऐसे में ग्रामीण अचंलो में गरीब - लाचार  लोगो के साथ क्या प्रलोभन देकर या जबरिया नसबंदी नहीं करवाई गई ताकि लक्ष्य की खानापूर्ति कीह जा सके। जबसे ग्राम पंचायतो के सचिवो को एक माह में अनिवार्य रूप से दो लोगो की नसबंदी करवाने के लिए बाध्य किया जा रहा है वहां पर अन्य शासकीय कर्मचारियों के क्या हाल होगें। अपनी नौकरी बचाने के लिए पूरे जिले में ऐसे कई लाचार बेबस लोग मिल जायेगें जो कि स्वेच्छा से नसबंदी नहीं करवाये होगें।
सतपुड़ा की श्रेणी के पश्चिम भाग में विशेष रूप से महादेव पहाडिय़ों पर बसती है। बैतूल एवं छिन्दवाड़ा जिले में पाई जाने वाली इस विलुप्त होती जा रही जनजाति को कोरकू , मुण्डा , कोलेरियन जनजाति के नाम से भी जाना जाता हैं जो कोरबा की सजातीय हैं। 1901 की जनगणना में इसे कोरबा के साथ ही रख गया था। कोरकू का मतलब केवल पुरूष या आदिवासी पुरूष हैं। बैतूल जिले की भैसदेहीं एवं बैतूल तहसील में पाई जाने वाली इस जनजाति को भारत सरकार के आदिवासी जनजाित अनुसंधान विभाग द्वारा विलुप्त जनजाती की श्रेणी में रखा गया है। इस प्रकार की विलुप्त होती जा रही जनजाति के बैतूल जिले में बिना कलैक्टर की अनुमति के धड़ल्ले से नसबंदी आपरेशन होने से इस जनजाति के समाप्त होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। वैसे भी इस जनजाित में पुरूषों की संख्या कम होने के कारण  अविवाहित युवक अपनी ससुराल में लमझेना बन कर जाता हैं। तथा अपने ससुराल में रह कर अपने ससुर का दिल जीतने के बाद भी विवाह करता है। कसी भी तरह से लोभ - लालच में आकर ग्राम पंचायत के सरपंच , सचिव से लेकर फील्ड वर्क कर रहे शासकीय कर्मचारियों को नौकरी बचाने के लिए कुंवारे और बुढ़े बुर्जग तक को मोहरा बनाया जा रहा हैं। वेतन रोके जाने से शासकीय कर्मचारियों के द्वारा विलुप्त हो रही जनजाति को ही टारगेट में शामिल करके उनकी जबरिया नसबंदी किए जाने से पूरी जनजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडरा गया है। भारत सरकार की ओर स्पष्ट निर्देश जारी किए जा चुके है कि ऐसी जनजाति की नसबंदी किसी स्ी सूरत में न की जाए लेकिन मात्र टारगेट के लिए टारगेट बनी कोरकू जनजाति कुछ साल बाद किताबों के पन्नो पर ही दिखाई देगी। जानकार सूत्रो ने बताया कि जिला प्रशासन से भयाक्रांत शासकीय कर्मचारियों को शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने के लिए हर प्रकार का लोभ - लालच दिया जा रहा है। इस काम में अब कोरकू बाहुल्य ग्राम पंचायतों के सरपंच , सचिव से लेकर फील्ड वर्क कर रहे शासकीय कर्मचारियों को नौकरी बचाने के लिए कुंवारे और बुढ़े बुर्जग तक को मोहरा बनाया जा रहा हैं। हम दो हमारे दो के स्लोगन ने शासकीय कर्मचारी को कहीं का नहीं छोड़ा हैं। परिवार नियोजन के कार्य में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों को स्वास्थ्य विभाग से लेकर सभी शासकीय विभाग जिसमें ग्राम पंचायत , स्कूली शिक्षा विभाग , महिला बाल विकास विभाग सजा की धमकी देने से भी नहीं चूक रहा है। जिले भर के शासकीय विभगो के प्रमुखो को जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए निर्देशो में शासन की मंशा का ख्याल रखने को कहा हैं। अभी हाल ही में स्वास्थ विभाग द्वारा परिवार नियोजन कार्य में 70 प्रतिशत से कम लक्ष्य हासिल करने वाले आधा सैकड़ा कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया है। साथ ही यह निर्देश दिए गए है कि यदि वे 70 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य पूर्ण नहीं करते हैं तो उन्हें वेतन नहीं दिया जाएगा। इस साल परिवार नियोजन कार्य को स्वास्थ्य विभाग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा गया है। यही कारण है कि इस कार्य की हर माह समीक्षा भी की जा रही है। फरवरी माह की समीक्षा जल्द की जाना है। यदि समीक्षा के दौरान किसी कर्मचारी की उपलब्घि कम पाई जाती है तो उसके खिलाफ दो वेतन रोकने की कार्रवाई भी विभाग द्वारा सुनिश्चित की गई है। साथ ही कठोर कार्रवाई की बात भी कही जा रही है। नसबंदी कार्यक्रम के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत स्वास्थ्य विभाग को 16 हजार 300 का लक्ष्य निर्घारित किया गया है। जिसके तहत अभी तक 13 हजार 52 नसबंदी ऑपरेशन किए जा चुके है। लक्ष्य हासिल करने के लिए विभाग द्वारा आशा कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहित पंच एवं सचिवों की भी मदद ली जा रही है। वहीं कार्य में शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने हितग्राहियों के लिए इनाम भी रखा गया है। लक्ष्य पूर्ति के लिए अपने को मिलने वाले रंगीन टीवी को भी लोग देने को तैयार है यदि कोई उनकी मदद करे। पहले कर्मचारियों को रंगीन टीवी विभाग की ओर से दिया जाला है लेकिन अब उन लोगो द्वारा गांव के नवयुवको को नई नवेली बीबी और रंगीन टीवी का आफर फासना पड़ रहा हैं। कुछ गांवों में तो ऐसे भी प्रसंग सुनने को मिल रहे हैं कि लक्ष्य की पूर्ति के लिए कुंवारों की नसबंदी की जा रही हैं। आमला तहसील मुख्यालय में एक कुंवारे युवक की नसबंदी की स्याही अभी सुख भी नहीं पाई हैं। जहां एक ओर ऐसे बदनामी के दौर में खासकर ऐसे आदिवासी युवको की जिन्हे रूपए - पैसे की जरूरत हैं तथा किन्ही कारणो से अविवाहीत भी है ऐसे गांव के युवको को कहा जा रहा हैं कि उन्हे अच्छी सुंदर बीबी भी दिलवा देगें यदि वे नसबंदी करवाते हैं। गांव के युवको को अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह भी समझाने का प्रयास किया जा रहा हैं कि उनकी शादी हो जाने के बाद उनकी सेहत एवं सेक्स क्षमता पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा वे जब चाहे तब उस नसबंदी को पुन: जुड़वा भी सकते हैं। वही दुसरी ओर आदिवासी परिवार की कुंवारी लड़कियों के परिवार जनो को इस बात के लिए तैयार किया जा रहा हैं कि वे उनकी लड़की का मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत नि:शुल्क विवाह के अलावा उनके लिए दान -दहेज की भी व्यवस्था करवा देगें।  

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