Sunday, January 30, 2011

बैतूल जिले में किसानो का नहीं कम हो रहा दर्द , अब किसान पशुओ को चरा रहे है गेंहू की फसल 78 करोड़ का नुकसान लेकिन फसल क्षतिपूर्ति मुआवजा देने में पक्षपात कर रही है सरकार

बैतूल जिले में किसानो का नहीं कम हो रहा दर्द , अब किसान पशुओ को चरा रहे है गेंहू की फसल
78 करोड़ का नुकसान लेकिन फसल क्षतिपूर्ति मुआवजा देने में पक्षपात कर रही है सरकार
बैतूल,रामकिशोर पंवार: जिस दिन बैतूल में प्रदेश के राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा बैठक ले रहे थे उस दिन बैतूल जिला मुख्यालय से 43 किलोमीटर की दूरी पर पाले से बर्बाद हुई फसल को एक किसान पशुओं को खिला रहा था। आठनेर के सावंगी पंचायत के एक किसान ने पाले से बर्बाद हुई गेहूं की फसल को पशुओं के चरने के लिए इसलिए छोड़ दिया ताकि दो में से किसी एक की भूख शांत हो सके। भूखमरी के हाल पर आ गये बैतूल जिले के किसानो के पास इसके अलावा कोई दुसरा विकल्प शेष नहीं बचा है। श्यामराव लिखितकर नामक इस किसान ने पांच एकड़ में हजारों रुपए की लागत से गेहूं की फसल तैयार की थी, लेकिन तेज ठंड और पाले के कहर से गेहूं की बालियों में दाने नहीं आए। किसान के पास फसल को चराने और कटवाने के सिवाए कोई रास्त नहीं रह गया था। राजस्व मंत्री करणसिंह वर्मा ने कलेक्टोरेट के सभाकक्ष में जिले के राजस्व अधिकारियों की बैठक ली। किसानो की फसल पर कोई ठोस निर्णय या सलाह करने के बजाय उन्हे इस बात की चिंता थी कि उनके शासन काल में पार्टी के जनप्रतिनिधियो को किसी प्रकार की शिकवा - शिकायते करने का मौका न मिले। मंत्री जी ने स्पष्ट कहा कि जनप्रतिनिधि कहते हैं, तो ही जाया करें। जनप्रतिनिधि जनता का चुना हुआ व्यक्ति होता है। यदि वह किसी प्रकार कि प्रार्थना करें तो उन्हे नियमों के दायरे न बता कर उनकी बातो को मदद का सवाल समझ कर थोड़ा भावनात्मक, रचनात्मक रवैया अपनाएं, नियमों का हवाला ना दें। उन्होंने कहा कि भू-अधिकार पुस्तिका बांटने जाएं तो जनप्रतिनिधियों को भी साथ ले जाएं। फसल के बर्बाद होने से किसानो की प्रदेश में लगातार हो रही आत्महत्याओ एवं आत्महत्या के प्रयासो के मामलो के बाद भी मंत्री ने किसी भी गांव के किसान के पास पहुंच कर उनके दुख:दर्द को बाटने के बजाय वे जिले के अफसरो को जनप्रतिनिधियों का दुख:दर्द बाटने की नसीहत देख कर चलते बने।
                प्राकृतिक आपदा से आहत किसानो किसानों को मुआवजा देने के लिए प्रदेश मुख्यालय से शुरू होकर कांग्रेस का आंदोलन अब बैतूल जिले के प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर पहुंच गया है। भोपाल में हुए लाठी चार्ज की ब्लॉक के कांग्रेसियों ने निंदा की है। प्रदेश सरकार का पुतला फूंक कर विरोध प्रदर्शन किया। ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष तिरूपति एरूलू के नेतृत्व में इक_ा हुए कांग्रेसियों ने जमकर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया। कांग्रेसियों का आरोप है कि प्रदेश सरकार किसानों की पीड़ा को लाठियों के बल पर दबाना चाहती है। पुतला दहन कार्यक्रम में ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष तिरूपति एरूलू ने कहा कि कांग्रेसी भोपाल में फसल के नुकसान के मुआवजे की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन प्रदेश सरकार उनकी अवाज को दमनकारी नीति के जरिए लाठियों के बल पर दबाना चाहती है। कांग्रेस इस नीति को बर्दाश्त नहीं करेगी। शापिंग सेंटर सारनी में प्रदेश सरकार की किसान विरोधी सरकार का पुतला दहन किया गया। इसी कड़ी में बैतूल जिला मुख्यालय के लिली चौक पर युवक कांग्रेस ने प्रदेश के मुख्यमंत्री का पुतला फूंका। पुलिस ने पुतले को बचाने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सके। कांग्रेसियों ने लाठी चार्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने, पुन: सर्वे कराने की मांग की है। कांग्रेसियों द्वारा सोमवार को भी इसको लेकर कलेक्टे्रट के सामने धरना प्रदर्शन दिया गया। कांग्रेसियों ने पाले से प्रभावित फसल के सर्वे में भी भेदभाव करने का आरोप लगाया है। किसानों ने बताया कि भाजपा नेताओं के खेतों का सर्वे किया जा रहा है। वहीं कांग्रेस नेताओं के खेत छोड़ दिए जा रहे हंैं। मुआवजा राशि भी कम दी जा रही है। कांग्रेसियों ने पुन:सर्वे कर राहत राशि बढ़ाने की मांग की है।                          जिले में फसल नुकसानी के मामले में जिला प्रशासन ने राहत आयोग को नुकसान के आंकलन की अंतिम रिपोर्ट रविवार की शाम को भेज दी। इस रिपोर्ट में जिले में तकरीबन 78 करोड़ रूपए का नुकसान बताया गया है। वैसे अभी तक जिले को राहत के लिए महज एक करोड़ रूपए ही मिले हैं। जिसमें से एक हफ्ते में सिर्फ 50 लाख ही खर्च हो पाए हैं। फसल नुकसानी में सर्वे और राहत वितरण अन्य जिलों की तुलना में बैतूल जिले में बहुत धीमी गति से हो रहा है। यही कारण है कि जहां सिहोर में पांच करोड़ की दूसरी किश्त मिल चुकी है। वहीं बैतूल जिले में अभी तक एक करोड़ में से सिर्फ 50 लाख ही किसानों तक पहुंचे हैं। जिले से तहसील के अनुसार जो रिपोर्ट भेजी गई है। उसमें सर्वाधिक नुकसान 29 करोड़ 51 लाख रूपए मुलताई तहसील का बताया गया है। इसके अलावा घोड़ाडोंगरी का 23 करोड़ 60 लाख बैतूल का 15 करोड़, शाहपुर का एक करोड़ 32 लाख, चिचोली तीन करोड़, भैंसदेही 10 करोड़ 23 लाख, आठनेर 12 करोड़ 14 लाख, आमला चार करोड़ 31 लाख रूपए का नुकसान आंका गया है।
                        बैतूल जिले में किसानो पहले तो प्राकृतिक आपदा की मार पड़ी लेकिन अब बिजली विभाग के अधिकारियों ने भी किसानों को करंट लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। जिले के पाढर सब स्टेशन से जुड़े साकादेही और सिल्लौर गांव में बिजली कर्मचारियों ने ताबड़तोड़ कार्रवाई कर 13 किसानों के खेतों में से सर्विस लाइन, मीटर और स्टार्टर के साथ तार भी जब्त कर लिए। प्राप्त जानकारी के अनुसार पाढर सब स्टेशन में पदस्थ 4 बिजली कर्मचारी द्वारा सिल्लौर और साकादेही गांवों में बिजली बिल की बकाया राशि वसूली के लिए निकले थे। जिन किसानों ने बिजली बिल की राशि नहीं दी उन किसानों के कुओं पर लगे बिजली कनेक्शन की सर्विस लाइन, मीटर, स्टार्टर और अन्य सामान उठाकर चलते बने। किसानों के खेत से जब्त सामान पाढर कार्यालय में जमा करने के बजाय कर्मचारी बैतूल ले गए। कार्यालय में मौजूद कर्मचारियों ने बताया कि यह कार्रवाई जेई के निर्देश पर की गई है। बिजली कर्मचारियों की कार्रवाई के बाद गांव में आक्रोश पनप रहा है। देर शाम को पूर्व सरपंच बुद्धूलाल परते के साथ चौपाल पर पचासों लोग जमा हो गए। श्री परते ने बताया कि 15 दिसंबर से 15 जनवरी तक बमुश्किल 5 दिन बिजली मिल पाई। तीन बार ट्रांसफार्मर सुधारा गया। जब किसानों ने विधायक के पास गुहार लगाई तब भोपाल से नया ट्रांसफार्मर मंगाकर लगाया गया। किसान धनराज यादव, गोकुल कोगे, शिव यादव ने बिजली कर्मचारियों की कार्रवाई को तानाशाही बताते हुए कहा कि इस समय किसानों की फसल चौपट हो गई है। जिन किसानों के कनेक्शन काटे गए उन पर महज डेढ़ हजार से 4 हजार रुपए का बिल बाकी है। कनेक्शन निकालने के बाद किसानों को सिंचाई के लिए परेशान होना पड़ेगा। खेतों में खड़ी फसल सूख जाएगी। किसानों को बिल जमा करने की मोहलत मिलनी चाहिए।बिजली विभाग के कर्मचारियों ने साकादेही गांव में पूरनलाल यादव के खेत में मौजूइ महिलाओं से कहा कि काम में अड़ंगा डालोगी तो केस बना देंगे। साकादेही गांव में अमरचंद मुंशी यादव, बाबूलाल यादव व शोभाराम प्रधान के कनेक्शन काटे गए। सिल्लौट गांव में बिजली कर्मचारियों ने 9 कनेक्शन निकाल दिए, जिनकी जानकारी देने में कर्मचारी आनाकानी करते रहे।



   

Saturday, January 29, 2011

भारत देश में सर्कस एक मजाक बन कर रह गई ........!


भारत देश में सर्कस एक मजाक बन कर रह गई ........!
बैतूल। भारत में 1879 से सर्कसों की परम्परा चली आ रही हैं। छत्रे, परशुराम माली, कार्लेकर, देवल इन्ही की इसी परम्परा को वालावलकर निभा रहे हैं। उनके द्धारा संचालित दि ग्रेट रॉयल सर्कस की स्थापना 1906 में हुई थी और अब यह सर्कस सौ साल पूरी कर चुकी है। दि ग्रेट रॉयल सर्कस 1962 से 1989 तक 24 देशो में अपने प्रदर्शन करने के बाद स्वदेश में अपने कार्यक्रम दे रही है। ढाई सौ कलाकारो एवं कर्मचारियो के सांझा परिवारों को पालने वाली इस सर्कस में इस समय लगभग प्रतिदिन का खर्च लगभग पचास हजार रूपये आता है। इतनी बडी राशी का संकलन करना आज के इस दौर में कठीन कार्य है। सर्कस के प्रति लोगो का मोह धीरे - धीरे कम होने से अब लोग सर्कस देखने आना छोडते चले जा रहे है। कभी सर्कस में आने वाली भीड को देख कर फूले नहीं समाते कलाकारो का घटता मनोबल दिन - दिन प्रतिदिन इन कलाकारो के सामने रोजी - रोटी का बडा संकट लाने वाला है। आत शहरी हो या फिर ग्रामिण दर्शको को टेलीविजन और किक्रेट के मैचो ने अपने घरो में बांध रखा है। कभी सिनेमा के चलते दोहरी मार का शिकार बनी सर्कस अब टेलीविजन एवं सीडी प्लेयरो की बलि चढती जा रही है। सर्कस से जुडी केरल की मोनिका बताती है कि उसके पापा इसी सर्कस मे रिंग मास्टर्स थे जिसकी प्रेरणा से वह सर्कस की प्रमुख कलाकार है जिसने सर्कस को ही अपना घर संसार बना लिया है। साल में एक बार अपने पूरे परिवार से मिलने जाने वाली मोनिका सर्कस की जिदंगी में ही अपना सब कुछ न्यौछावर कर चुकी है। सुश्री मोनिका कहती है कि लोग पहले सर्कस में जंगली जानवरो विशेष कर शेर - चीते - भालू को देखने जाते थे,लेकिन अब तो राजस्थान के जहाज कहलाने वाले रेगिस्तानी जानवर ऊट और पालतू हाथियो के अकसर गांव - गांव तक मिल जाने से इन जानवरो के प्रति भी लोगो का रूझान कम हो गया है। सर्कस का काम देख रहे राजस्थान के प्रेम सिंह राठौड कहते है कि जबसे पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमति मेनका गांधी ने वन्य प्राणियो के प्रदर्शन पर रोक लगाई है तबसे लेकर आज तक सर्कसो में दिखने वाले जंगली जानवर भी जंगल की तरह सर्कस से भी गधे के सिंग की तरह गायब हो गये है। श्री राठौड कहते है कि ऐसे में बीस रूपये से लेंकर साठ रूपये के टिकट लेकर तीन घंटे तक दर्शको को बैठाल रखना तेढी खीर है। श्री राठौड इसे दर्शको की सर्कस के प्रति अरूचि का कारण भी मानते है। सर्कस के मालिको की मजबुरी है कि वह दर्शको को अपनी सर्कस में तीन घंटे तक रोके रखने के लिए अपने पास मौजूद महिला कलाकारो को भी कम कपडे में पेश कर उनकी देह को प्रदर्शित कर उससे दर्शको को बांधे रखे। आज भारत में मात्र 18 सर्कस ही बची है। अक्षय कुमार की फिल्म हेराफेरी में अपने करतब दिखा चुकी इस सर्कस ने कुछ साल पूर्व तक फ्रांस, सोमालिया, इथओपिका, इजिप्त, इराक, टांझानिया, सिंगापुर,मलेशिया, सिरिया, जॉर्डन कुवैत, लेबोनान, केनिया, युएई, सौदी अरबिया, मॉरिशस, सुदान, इंडोनेशिया जैसे कई देश में अपने प्रदर्शन  को प्रदर्शित किया। आज सर्कस जोकरो एवं जैमनास्टीक जैसे खेलो के अलावा मौत के कुये में मोटर साइकिल की रेस तथा खुबसुरत बालाओं के लोचदार बदन को देखने के लिए जानी जाती है। भारत में सर्कस में काम करने के बाद कई कलाकारो ने अपनी स्वंय की सर्कस तो बना ली लेकिन वे उसे ज्यादा समय तक जीवित नहीं रख सके। आज इस देश में सर्कस के कलाकारो के पास कोई दुसरा काम नहीं होने की वजह से वे अपनी जान को जोखिम में डाल कर ऐसे प्रदर्शन कर रहे है जिससे उसकी जान भी जा सकती है। देश में ऐसे कई अवसर इन सर्कसो में देखने को मिले जब सर्कस में जान जोखिम में डालने वाले कलाकरो को मौत की गोद में सोना पडा। बैतूल आई इस सर्कस में भी एक कलाकार दुर्घटना का शिकार हो गई जिसका नागपुर में इलाज चल रहा है। सर्कस में जरा सी भूल जान को जोखिम में डाल सकती है। राजकपुर की फिल्म मेरा नाम जोकर में राजकपुर ने एक जोकर की पीडा को दर्शाया था लेकिन पूरी सर्कस पीडा का दुसरा नाम है। बैतूल में आई सर्कस में यू तो निना पेनकिना लासो, हंटर और पक्षियों की कला पेश करती हैं। विदेशी कलाकरो को अनुबंधन पर लाने के बाद उनसेजो काम प्रस्तुत किये जाते है वह भी अपने आप में तारीफे काबिल है। रूस की महिला कलाकार दियोरा रशियन रस्सी की बेहतरीन कलाकारी पेश करती हैं। और रमिल, शाहनोजा भी एक बेहतरीन कलाकारा हैं जो रिंग डांस, रिंग बैलेंस जैसी कला भी अपने अनोखे अंदाज में पेश करती हैं। साथ में भारतीय कलाकारों का भी अच्छा मेल दिखायी देता हैं। सर्कस पर यूं तो पूरे विश्व का कब्जा है। अरबी देशो को छोड कर प्रायः विश्व के सभी कोने में सभी देशो की सर्कसे है। भारम एशिया का सबसे बडा महाद्धीप है इसलिए सर्कस को आज भी दर्शक मिल जाते है लेकिन उनके भरोसे पूरे दो - ढाई सौ लोगो का पेट पालना संभव भी नहीं है। श्री एम प्रभाकर सर्कस के प्रबंधक है उनके अनुसार भारत में केरल को छोड कर कोई भी राज्य सरकार सर्कस के कलाकारो को पेंशन जैसी सुविधा नहीं दे रहा है। प्रभाकर मानते है कि सर्कस एक प्रकार से जोखिम भरा खेल है लेकिन जोखिम तो घर से लेकर बाहर तक हर जगह है। हमें अपना और अपने परिवार का पेट पालना है तो जोखिम तो उठाना पडेगा ही। सर्कस के जोकर रामबाबू का मानना है कि यदि वह बौना नहीं होता तो जोकर नहीं बनता। लोगो को हसंाने वाला जोकर खुद  अकेले कोने में बैठ कर सिसकी लेता है। वह कहता है कि जोकर मैं बना नहीं हूं ईश्वर ने मुझे जोकर लोगो को हसंाने के लिए बनाया है। घर परिवार से कोसो दूर सर्कस में मौत के कुयें में मोटर साइकिल चलाने वाले दो कलाकार बताते है कि जिदंगी हादसो से भरी है। सबसे बडा हादसा दोपहर और रात की भूख है जो सब कुछ करवाती है। बैतूल के न्यू बैतूल ग्राऊण्ड में आई सर्कस के कलाकारो के अनुसार सरकार को चाहिये कि लोगो के स्वस्थ मनोरंजन के इस साधन को जिंदा रखने के लिए कोई ऐसा जनहित कार्य करे ताकि सर्कस और जोकर बरसो तक जीवित रह सके।


बैतूल जिले में पुलिस चुन - चुन कर पत्रकारो को निपटाने मंे लगी है


बैतूल जिले में पुलिस चुन - चुन कर पत्रकारो को निपटाने मंे लगी है
सीधे आरपार की लडाई के बदले चोर उच्चको का ले रही सहारा
  बैतूल. मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में आपा खो चुकी पुलिस अब पत्रकारो को ही टारगेट बना कर उन्हे किसी न किसी तरह से निपटाने में लगी हुई है। जिले में हर तीसरा नामचीन पत्रकार पुलिस की किसी न किसी प्रकार की यातना का शिकार बन चुका है। पुलिस जिन पत्रकारो के गिरेबान में सीधे हाथ नही डाल सकती है उन्हे निपटाने के लिए वह अब चोर - उच्चको का सहाराले रही है। बैतूल जिले में एक दर्जन से अधिक पत्रकारो पर पुलिस ने नामजद प्रकरण दर्ज किये है तथा इतने ही पत्रकारो को या तो पिटवाया है या फिर उनके कार्यालयो - घरो में सेंघ लगा कर चोरी करवाई है। बैतूल जिले की पुलिस ने दैनिक पंजाब केसरी के पत्रकार की लेखनी से आहत होकर जहां एक ओर उसके खिलाफ जिला बदर की कार्यवाही शुरू करवा दी है वही दुसरी ओर उसने मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में खुले आम अपने तथाकथित बिगडैल अफसर सुनील लाटा से यूनीवार्ता के पत्रकार वामन पोटे को बेरहमी से पीटा और उसके शरीर के कपडे तक फाड डाले। पुलिस ने पी टी आई के पत्रकार मयंक भार्गव के घर पर चोरो को भिजवा कर उसका मोबाइल तक उडा दिया। दैनिक लोकमत समाचार नागपुर के पत्रकार अनिल सिंह ठाकुर के कार्यालय में चोरो का धावा और कार्यालय से चोरी करवाया गया टी वी एवं अन्य सामान आज तक बरामद नहीं हुआ। इसी तरह नवभारत भोपाल के पत्रकार विनय वर्मा के कार्यालय में सेंधमारी करवाने में कोई कसर नहीं छोडी। पुलिस ने दैनिक नवदुनिया भोपाल के पत्रकार पंकज सोनी के कार्यालय के समक्ष खडी उनकी नई नवेली बाइक तक उडवाने में कोई कसर नहीं छोडी है। इसी कडी मेे पुलिस द्वारा सहारा समय के पत्रकार इरशाद हिन्दुस्तानी के घर के सामने रखा दो टन लोहा तक पर चोरो से हाथ तक साफ करवाया दिया। इसमें से मयंक भार्गव , अनिल सिंह ठाकुर , विनय वर्मा , वामन पोटे , पंकज सोनी , इरशाद हिन्दुस्तानी सभी राज्य शासन द्वारा अधिमान्य पत्रकार होने के साथ - साथ पुलिस की शांती समिति के सदस्य भी है। इसके पूर्व पुलिस ने सहारा समय के पत्रकार इरशाद हिन्दुस्तानी , एन डी टी वी , के अकील अहमद , ई टी वी के ऋीषि नायडू को नक्सल वादी तक कह डाला था और उन्हे राहुल गांधी के प्रोगाम से वंचित रख दिया था। इन सभी पत्रकारो में मात्र पुलिस अधिक्षक के अभिन्न मित्र एवं परिवारीक सदस्य मयंक भार्गव का ही चोरी गया मोबाइल मिला बाकी पत्रकारो का सामान आज तक लापतागंज की तरह लापता है। बैतूल जिला मुख्यालय के जब ऐसे हाल है तब जिले के अन्य क्षेत्रो में पत्रकार प्रताडना के मामले घटित होना आम बात है। मुलताई पुलिस ने कथित फर्जी मामले में बैतूल के पत्रकार सरदार सुखदर्शन सिंह बंटी के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया जबकि बैतूल से मुलताई 45 किलोमीटर दूर है। इसी तरह सारनी में रजत परिहार एवं राजेन्द बंत्रप के खिलाफ भी पुलिस द्वारा प्रकरण दर्ज किये जा चुके है। पुलिस बैतूल में दैनिक वीर अर्जून दिल्ली एवं न्यूज 24 के पत्रकार सुनील पलेरिया , दैनिक आज की हलचल के आनंद सोनी सहित कई पत्रकारो को झुठे प्रकरणो में जेल तक भिजवा चुकी है। बैतूल पुलिस की माने तो वह सब के साथ समान व्यवहार कर रही है इसलिए वह पत्रकारो को समय - समय पर इस बात का अहसास कराती रहती है कि पुलिस सगे बाप की भी नहीं होती है। बरहाल में बैतूल जिले में पत्रकार प्रताडना का मामला प्रेस कौसिंल आफ इंडिया तक पहुंचने के बाद भी पुलिस की हरकतो में कोई सुधार नहीं आ सका है। सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर काम कर रही पुलिस उन पत्रकारो को टारगेट बना रही है जो कि पुलिस - प्रशासन - भाजपा - और राज्य सरकार के लिए सरदर्द बने हुये है।    

बैतूल जिले की सुरक्षा को हो सकता है खतरा.....! एक माइकल हेडली बैतूल जिले में भी


       बैतूल जिले की सुरक्षा को हो सकता है खतरा.....!  एक माइकल हेडली बैतूल जिले में भी
                                       बैतल से रामकिशोर पंवार की खास रिर्पोट
बैतूल. अखण्ड भारत का मध्य बिन्दु कहे जाने वाले सेन्टर पाइंट बरसाली मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट का सीमावर्ती बैतूल जिले का ण्क छोटा सा गांव है. भारत के मध्य नागपुर - भोपाल के बीच में आने वाले प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में कभी भी कोई बडा हादसा हो जाये तो इसे कोई आश्चर्यचकित कर देने वाली घटना नहीं मानना चाहिये....! जिस बैतूल जिले के भारत सरकार सेफ जोन मानकर यहां पर आमला एयरफोर्स स्टेशन बनाने के बाद आठनेर मे प्रुफ रेंज बनाने जा रही है. जिस बैतूल जिले में कभी दिल्ली को लाने की तैयारी चल रही थी आज उसी बैतूल जिले की सुरक्षा पर एक नहीं कई बडे खतरे मंडराने लग गये है. बैतूल जिले में कोल इंडिया की पाथाखेडा स्थित कोयला खदानो के अलावा मध्यप्रदेश सतपुडा ताप बिजली घर की इकाई कार्यरत है. आतंरिक सुरक्षा की दृष्टि से बैतूल जिले में इस समय विदेशियो की जिस ढंग से आवाभगत हो रही है तथा चोपना पुर्नवास क्षेत्र में बंग्लादेशी घुसपैठियों की बसाहट उससे यह लगता है कि बैतूल जिले में एक नहीं दर्जनो माइकल हेडली जिले के सेफ जाने कहे जाने वाले राष्टीय एवं प्रदेश की अनमोल संपदा की रेकी क उसकी सुरक्षा व्यवस्था पर कोई बडा हादसा को जन्म दे सकते है. बैतूल जिले मंे एक अमेरिकी नागरिक को आमला एयरफोर्स स्टेशन की ओर से दो- तीन बार चेतावनी पत्र भी जारी हो चुके है कि वह अपने स्वंय के नीजी प्लेन को लेकर वायु सीमा क्षेत्र के उपर से उडान न भरे. इसी तरह की आशंका सारनी ताप बिजली घर एवं पाथाखेडा कोयला खदान क्षेत्र की ओर से भी आशंका व्यक्त की जा चुकी है लेकिन बैतूल जिले में छै मास के अस्थायी वीजा पर लगभग बीते दो दशक से अधिक समयावधि से  रह रहे अमेरिकी नागरिक सैम वर्मा को पहले दोहरी नागरिकता थी लेकिन भारत की कई बैंको से दिवालिया घोषित होने के बाद भारतीय नागरिक को ठुकरा कर अब छै - छै मास के अस्थायी वीजा परमीट पर रह कर बैतूल जिले के राजनैतिक - सामाजिक - सांस्कृतिक - धार्मिक - आर्थिक एवं विकास की योजनाओं में हस्तक्षेप करने वाले इस अमेरिकी नागरिकी द्वारा जानबु कर भारतीय संविधान एवं कानून का मजाक उडाने के बाद अब उसके द्वारा विदेशी डाक्टरो की टीम को बुलवा कर उनसे कथित उपचार के बहाने उन्हे जिले का पूरा सामाजिक - आर्थिक - सुरक्षात्मक मानचित्र को दिखाया जा रहा है जो कि आगे चल कर किसी भी बडी घटना को अंजाम दे सकता है. राज्य एवं केन्द्र सरकार की खुफिया नजरो से बचने के लिए इस विदेशी नागरिक द्वारा अपने राजनैतिक संबधो को भुना कर उसका समय - समय पर फायदा उठाया जा रहा है. नागपुर - भोपाल फोर लेन का मार्ग बदलने की बात हो या फिर प्रदेश सरकार के स्वास्थ विभाग के बजट का पैसा अपनी मां के नाम पर तथाकथित इलाज करवाने के नाम पर खर्च करने की वह इन सब में महारथ हासील किये हुये है. पहले तो प्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्रियो एवं अफसरो को इस जालसाज - दगाबाज विदेशी से चीढ1 थी लेकिन अब वे सब के सब इस विदेशी की मां की कथित याद मे बने मंदिर में मत्था टेकने चले आते है. पंखा के बाद पूरे देश में कई वेयर वेल जैसी टायर फैक्टरी खोलने के बाद स्वंय को दिवालिया घोषित करने वाले इस अमेरिकी नागरिक के भारत के किसी भी बैंक में खाते नहीं है और वह लाखो रूपयो की मंदिर में आने वाली चढौती एवं दुकानो के किराये के रूप में आने वाली भारतीय मुद्रा से अपना खर्च ही नहीं चला रहा बल्कि ढाई से तीन दर्जन से अधिक लठैतो का गिरोह बना रखा है जो भी उसके खिलाफ आवाल उठाता है उसकी वह जान तक लेने के लिए तैयार रहता है. सपा के पूर्व विधायक डा सुनीलम पर पंखा के पास जान लेवा हमला इस बात का प्रमाण है. बैतूल जिले में इस समय आमला एयरफोर्स एवं आठनेर में प्रस्तावित प्रुफ रेंज एरिया देश की सुरक्षा से जुडे हुये है. जिले की सीमा से लगे ताकु - केसला प्रुफ रेंज एरिया भी बैतूल जिले की सीमा से लगे है. ऐसे में विदेशी डाक्टरो को अपने नीजी छै सीट वाले छोटे गरूड प्लेन से इन क्षेत्रो के ऊपर से कथित सैर करवाना - रेकी करवाना या आना - जाना करना किसी बडी घटना या हादसे को जन्म दे सकता है , लेकिन जब बैतूल जिले के प्रभारी एवं वनमंत्री सरताज सिंह को ंिचंता नहीं तो फिर जिले के प्रशासन के आला अफसर क्यों सिरदर्द पाले...! बैतूल जिले मंे इस समय पाढर हास्पीटल और कथित चलित बालाजी हास्पीटल में विदेशी चिकित्सको का आना - जाना लगा रहता है लेकिन पाढर पुलिस चौकी तथा बैतूल बाजार थाने को सह तक नहीं मालूम की कब कौन आया और चला गया. बैतूल जिले की पुलिस पत्रकारो की पूरी जन्म कुण्डली तैयार करके रखी हुई है लेकिन उसे भी यह बता नहीं कि चोपना पुर्नवास क्षेत्र मंे बसाहट के बाद कितने परिवारो की संख्या बढी है तथा वे कब आये और उन्हे कैसे भारतीय नागरिकता मिल गई....! बैतूल जिले की पुलिस को आज दिनांक तक यह नही मालूम की अमेरिकी नागरिक माइकल हेडली द्वारा की गई कथित रेकी क्या होती है....! जिस जिले का मुखिया पुलिस एवं प्रशासन का अपने सारे काम - धाम छोड कर एक डिफाल्टर घोषित हो चुके अमेरिकी नागरिक के आगे - पीछे दुम हिलाते फिरते हो वहां पर किसी से भी बैतूल जिले की आतंरिक सुरक्षा की बात करना बेमानी होगा. आज भोपाल नागपुर नेशनल हाइवे 69 पर स्थित बैतूल बाजार का अमेरिकी नागरिक द्वारा बनवाया गया रूक्मिणी बालाजी मंदिर , पाढर स्थित इसाई मिशनरी का पाढर हास्पीटल , शाहपुर के समीप स्थित चोपना पुर्नवास क्षेत्र में बेखौफ विदेशी आ जा रहे है लेकिन प्रशासन को इस बात की कतई ंिचंता नहीं कि पर्यटन दृष्टि से बैतूल जिले में देखने लायक जब कोई एतिहासिक - पौराणिक - अदभुत - चमत्कारिक कोई स्थान या क्षेत्र नहीं है तब आखिर बैतूल जिले में बेखौफ विदेशी आकर क्या कर रहे है. बंग्लादेश की सीमा से वैसे भी पाकीस्तान के आतंकवादियो की घुसपैठ किसी से छुपी नहीं है इसके बाद भी बैतूल जिले में आकर भाजपा शासन काल में बस रहे बंग्लादेशी हिन्दुओं की भीड में क्या संभव नही है कि विदेशी आतंकवादी भी आ कर बैतूल जिले में मुम्बई जैसा कोई धमाका कर जाये...! वैसे भी बैतूल जिले से लगा बुराहनपुर मुस्लीम आतंकवाद संगठन सिमी का प्रभाव का क्षेत्र रहा है ऐसे में भाजपा सरकार के राज्य में आतंकवाद की कोई भी घटना को बेरोक - टोक आने - जाने की छुट का फायदा उठा कर अंजाम देना कोई नहीं घटना नहीं हो सकती....! वैसे भी बैतूल जिले में एक अमेरिकी नागरिक भारतीय कानून का मजाक तो कई बरसो से उडा रहा है इसलिए वह बैतूल जिला प्रशासन की आंखो के सामने 26 जनवरी को 27 जनवरी को मना कर यह बताना चाहता है कि वह किस बला का नाम है....!
इसे बैतूल जिले का दुर्रभाग्य कहा जाये कि जिस अमेरिकी नागरिक पर उसके जन्मस्थान के स्वजाति एवं गैर स्वजाति लोगो का भरोसा नहीं रहा तब बैतूल जिला प्रशासन आखिर उस पर आंख मंुद कर कैसे भरोसा कर रहा है कि वह बैतूल जिले में ऐसा कोई भी काम नहीं कर रहा है जो कि देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता है. जिस व्यक्ति के चाल - चरित्र और चेहरे पर उसके ही गांव के लोगो को यकीन नहीं उसके आगे - पीछे घुमने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार और उसके मंत्री यहां तक की संगठन के लोग कहा करते थे कि कांग्रेस के पूर्व केन्द्रीय मंत्री अर्जून सिंह की नजदीकी का वह फायदा उठा रहा है आज पूरी भाजपा सत्ता और संगठन उसी अमेरिकी नागरिक के सामने नतमस्तक है यह समझ के परे की बात है. बैतूल जिले के गांवो में कुपोषण से कई बच्चो एवं महामारी से लोगो की मौते हो गई लेकिन वहां सुविधा पहुंचाने के लिए स्वास्थ विभाग के पास बजट नहीं और एक विदेशी अमेरिकी नागरिक के लिए प्रदेश की सरकार कथित स्वास्थ सेवा के नाम पर मेला लगा रही है जिसमें बैतूल जिले के बाहर के लोग कथित इलाज करवा रहे है. जिस व्यक्ति की नीयत के चलते उसके गांव के ही लोग उसे उसकी मां की याद में बने मंदिर परिसर से लगी जमीन देने को तैयार नहीं उसे प्रदेश की सरकार अब बालाजी हास्पीटल बनवाने के लिए जमीन देगी. अब इसी बात से यह अदंाज लगाया जा सकता है कि प्रदेश की सरकार आस्तीन में सांप पाल रही है या नहीं....!  भगवान न करे यदि बैतूल जिले में किसी भी प्रकार की कोई आंतकवादी या राष्ट विरोधी घटना को अंजाम मिलता है तो इसके लिए कोई व्यक्ति विशेष जिम्मेदार न होकर पूरी भाजपा सरकार - संगठन - और प्रशासन होगा....!


गरूड एवं सफेद उल्लू के चक्कर में कौन किसे बना रहा है उल्लू .


बैतूल जिले में हर साल नवम्बर के आखरी एवं दिसम्बर
के प्रथम सप्ताह में मिले रहे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी के बच्चे
गरूड एवं सफेद उल्लू के चक्कर में कौन किसे बना रहा है उल्लू .....!
बैतूल। मध्यप्रदेष के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में मिल रहे दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के बच्चो को लेकर जबरदस्त वाद - विवाद छिड गया है। बीते सालो की तरह इस बार भी बेतूल जिले में नवम्बर - दिसम्बर माह में दुलर्भ प्रजाति के सफेद उल्लूओं की वजह से आस्था एवं श्रद्धा का ऐसा जन सैलाब उमडा हे कि देखते बनता है। बेतूल जिले में इस समय चारो ओर श्रीमद भागवत कथा - गरूड पुराण - रामकथा - व अन्य धार्मिक कार्यक्रमो का किसी न किसी गांव में आयोजन हो रहा है ऐसे में भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन गरूड और उसके बच्चे का मिल जाना किसी धार्मिक जन सैलाब रूपी मेले एवं धार्मिक आस्था को के वेग को नहीं रोक पा रहा है। बीते तीन सालो से बैतूल जिले में शीतकालीन मौसम में अकसर जिले के विभिन्न ग्रामिण अंचलो से किसी ने किसी के ,ारा इस प्रकार की सनसनी खेज खबरो का खुलासा किया जाता रहा है कि जिले के फंला गांव में सफेद प्रजाति के उल्लूओं - गरूड के बच्चो का समूह उन्हे देखने को मिला है। बीते वर्ष 2007 में पहली बार मिले गरूड के बच्चो को लेकर जिले के सबसे बडे षासकीय जयवंती हक्सर महाविद्यालय के प्राणीषास्त्र के दो जानकारो की राय गिरगीट के रंगो की तरह बदलती दिखाई देने से ग्रामिण जनता का उल्लू बनना स्वभाविक है। जहां एक ओर राज्य सरकार के वन विभाग के एक आला अफसरो द्वारा  इस बात का दावा किया कि बैतूल जिले मे मिले दुर्लभ प्रजाति के बच्चे दर असल में सफेद उल्लू है। वही दुसरी ओर बैतूल जिला मुख्यालय पर स्थित षासकीय जयवंती हक्सर महाविद्यालय के प्राणी षास्त्र के जानकार डां एस डी डोंगरे ने भी अपने साक्षात्कार में दावा किया कि बैतूल जिले में ग्राम सोनोरा में मिले दुर्लभ प्रजाति के बच्चे गरूड ही है। डां डोंगरे का अध्ययन बताता है कि गरूड अकसर षीत कालीन क्षेत्र में रहता है। हिमालय की तराई एवं समुद्र के किनारे पर गरूड की प्रजाति पाई जाती है। किंग फीषर भी गरूड प्रजाति का होता है। डां डोंगरे की बात का बीते साल 19 दिसम्बर 2007 को जयवंती हक्सर महाविद्यालय के प्राणी षास्त्र के जानकार श्री पी.के. मिश्रा ने कुछ इस प्रकार समर्थन किया था कि बैतूल जिले के ग्राम सोनोरा में मिला दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के बच्चो का जोडा इगल - गरूड प्रजाति का है। श्री मिश्रा ने अपने कई अनुभवो के आधार पर कहा कि बैतूल जिले में मिले दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के बच्चे गरूड प्रजाति के है क्योकि गरूड की कई प्रजाति है। उस समय दोनो ही षासकीय जयवंती हक्सर महाविद्यालय के प्राणी षास्त्र के जानकारो ने उन पक्षियों को सफेद उल्लू नहीं बताया लेकिन जब सोनोरा के बाद हाल ही में आमला विकासखण्ड की ग्राम पंचायत रमली में मिले इन तथाकथित गरूड उर्फ सफेद उल्लूओं ने एक बार फिर बैतूल जिले की सोई धार्मिक आस्था में भूचाल ला दिया है। इसके पूर्व नवम्बर एवं दिसम्बर माह में बैतूल जिला मुख्यालय के हमलापुर तथा नेषनल हाइवे 59 ए बैतूल - इन्दौर मार्ग पर स्थित ग्राम देवगांव में मिले उन जैसे पक्षियोे के बच्चो को सफेद उल्लूओं की प्रजाति का तो कुछ के द्वारा गरूड प्रजाति का बताया जा रहा है। अब इस बार जब देवगांव के दुर्लभ प्रजाति के पक्षियो के बच्चो को गरूड की जगह उल्लू बताने से ग्रामिण इन सरकारी कालेज के प्राणी षास्त्रियों के जानकारो एवं वन विभाग के अफसरो की कथित ब्यानबाजी से स्तबध रह गये है। इन भोले भाले ग्रामिणो को आखिर कौन उल्लू बना रहा है यह समझ के परे की बात है। बैतूल जिले की आमला विकासखण्ड की बहुचर्चित ग्राम पंचायत रमली में नवम्बर माह के आखरी दिनो में तथा दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह में मिले सफेद उल्लूओं ने एक बार फिर बैतूल जिले की जनता को उल्लू बनाने में कोई कसर नहीं छोड रखी है। सोनोरा - हमलापुर - देवगांव के बाद अब रमली में मिले दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के बच्चो को आखिर अनपढ - अषिक्षित - श्रद्धालु ग्रामिण गरूड समझे या फिर सफेद उल्लू उनकी समझ के बाहर की बात है। इस समय पूरे बैतूल जिले में जबरदस्त बहस छिडी हुई है कि जिले के गांवो में मिलने वाले गरूड कहीं बैतूल जिले की सोई आस्था को जगाने का कोई उपाय तो नहीं है। कही कोई जिले की जनता की धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड तो नहीं कर रहा है।

रेत से बुत न बना , ए मेरे अच्छे फनकार एक लहमें को ठहर , मैं तुझे पत्थर ला दूं।


रेत से बुत न बना , ए मेरे अच्छे फनकार एक लहमें को ठहर , मैं तुझे पत्थर ला दूं।

ताप्ती को लेकर हर कोई राजनीति और दुकानदारी करने लगता है।हर कोई ताप्ती को लेकर भाषण देने एवं ज्ञान बाटने में पीछे नहीं है। मुलताई के विधायक डां सुनीलम् ने तो बकायदा अपने लेटर हेड पर विधायक के पते में मुलतापी बैतूल छपवा लिया था लेकिन दस साल में वे ताप्ती के लिए दस सराहनीह कार्य भी नही करवा सके। मुलताई में आज भी ताप्ती की पहली पुलिया और ताप्ती का जन स्थान गंदगी और अतिक्रमण की मार का शिकार है। लोगो को उपदेश में मजा आता है। दुसरे के फटे पेंट को देख कर ताने मारने वाले यह क्यो भूल जाते है कि उसकी तो अंदर की चडड्ी तक फटी हुई दिखती चली आ रही है। मैं आज इस बात को दंभ और खंभ के साथ कह सकता हंू कि मैंने और मेरे परिवार जनो तथा मित्रो ने मात्र डेढ माह में जितने लोगो को ताप्ती के पावन जल और थल तथा दर्शन से जोडा उतना तो कोई भी इंसान आज तक नहीं जोड पाया है और न पायेगा। अगर वह ऐसा कार्य कर देगा तो मैं सदैव उसके चरणो के धूल से स्वंय का तिलक करने को तैयार हूं। मैं चाहता हूं कि तापती का नीर घर - घर तक पहुचे लेकिन ताप्ती का नीर तब घर - घर तक पहुंच पायेगा जब हम लोगो में ताप्ती के प्रति श्रद्धा - समपर्ण - अपनापन - लगाव - चाहत नहीं पैदा कर देते। हमारे छोटे से काम से लोगो की बौखलाहट ने आज एक पुणित कार्य में रोक लगा दी। गणेश भाई आज यदि ताप्ती हर शनिवार निरंतर ताप्ती स्थित शिवधाम बारहलिंग आते तो कौन सा पहाड टूट जाता। ताप्ती के जल के प्रति लोगो दुकानदारी तो देखिये कि वे लोगो से कहते फिरते कि लम्बी - चौडी भीड से ताप्ती का पानी गंदा हो गया। आज ताप्ती के प्रति अपनत्व का भाव रखने वाले चार लोग भी ताप्ती के पानी के मैले होने के प्रति चिंता रखते तो उन्हे चाहिये था कि वह रोज नहीं तो कम से कम सप्ताह में एक बार ताप्ती में स्नान कर ताप्ती नदी के किनारे फैलाई गई गंदगी को जला कर उसे राख से खाक मे परिवर्तित करते लेकिन यह सब वे क्यो करे क्योकि यह सब करने से उन्हे कौन जानेगा - पहचानेगा। ताप्ती के बहते और थमें पानी में लगी सिचाई की मोटरो को बंद करवाने वाले यदि ताप्ती के प्रति समपर्ण की थोडी सी भी अपनी नीयत को साफ रखे तो उनके लिए इससे बढिया क्या काम होगा कि वे मेरे साथ हर शनिवार और मंगलवार ताप्ती नदी के किसी भी घाट पर जमा हो रही गंदगी - पन्नी - प्लास्टीक और कपडे - कागज - कुडा - करकट को जलाने में सहयोग करे। मैं जो लिख रहा हूं वे सांई के विचार है भी या नहीं पर मैं ऐसा मानता हंू कि ‘‘ सांई ज्ञान उसे न दीजिये जो अज्ञानी हो......!’’ बैतूल जिले में बहने वाली ताप्ती के किनारे आज सुखते जा रहे है। आज रोंढा जो कि मेरी जन्मभूमि एवं मातृभूमि भी है वहां से अच्छी शुरूआत हुई जिसका मैं दिल खोल कर समर्थन करता हूं। आज इस बात को हम सभी को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा कि हम ताप्ती के जल को गुजरात की जीवन रेखा बनने में सहायक होने से रोके क्योकि ‘‘ हम प्यासे मरे और लोग पानी से नहाते जाये......!’’ यह सब नहीं चलेगा और न चलने दिया जायेगा। हमारी मां के आंचल के दुध से हमारे बचपन की भूख और तृष्णा शांत हो हम दुसरो के बचपन को पालने की सोची जाये। अब ऐसा कदापि नहीं होगा और न होने दिया जाये। पहले हमारा पेट भरे बाद मे दुसरे की चिंता और चिता के बारे में सोचने की नसीहत पर हमें एक जुट होना पडेगा। बैतूल जिले में पूरी ताप्ती दिन - प्रतिदिन मुलताई से लेकर जिले की सीमा तक सुखती जा रही है। हमें ताप्ती के गहरीकरण के प्रति नहीं बल्कि उसके बहाव को स्टाप डेम और जल रोको अभियान के तहत जहां - तहां पर जल संग्रहण स्थलो का निमार्ण कार्य करना होगा। ताप्ती के प्रति हमें अब अपनी नीति और रीति दोनो ही बदलनी होगी। अब हमारे साथ कंधा से कंधा मिला कर मौनी बाबा से लेकर गणेश बाबा को भी ताप्ती के जल को रोकने का भागीरथी प्रयास करना होगा। अब आज आवश्क्यता इस बात की आ पडी है कि बैतूल जिले में ताप्ती नीर को घर - घर बोतलो एवं पन्नी में न पहुंचा कर ऐसा अद्धितीय कार्य करना होगा कि स्वर्ग से रंजनीकांत गुप्ता की आत्मा भी हमारे कार्यो पर फूल बरसा सके। ताप्ती को जगह - जगह पर इतनी रोको और उसको अन्य नदियो से भी जोडना होगा ताकि ताप्ती का जल बैतूल जिले के गांव - गांव तक पहुंच सके। अब इस बात को भी सोचना होगा कि जब भोपाल के लोगो के लिए नर्मदा मैया भोपाल जा सकती है तो हमें तो चुल्लु भर पानी में डूब मरना चाहिये कि हम ताप्ती को अपने गांव - गली तक नहीं ला पा रहे है। बैतूल जिले के लोगो को तो ताप्ती के बहते पानी को स्वंय के पैसो से ऐसे सतलज की तरी नहर बना देनी चाहिये कि हमारी मां हमारे गांव - खेत और खलिहान से गुजरे और हम रोज उसका पावन जल पी सके। हमारे खेतो की - कुओ की प्यास बुझ जाये इसके लिए हमें भागीरथी प्रयास करना होगा। हम सभी को चाहिये कि हर हाल में हम इस बार उसी को मत दे जो कि इस बात का भरोसा - यकीन दिला सके कि वह नर्मदा जिस तरह भोपाल पहुंची है ठीक उसी तर्ज पर हमारी तापी हमारे घर - गांव - गौठान तक भले न पहुंचे लेकिन उसका जल भी जिले के बाहर लोगो के उपयोग में बाद में आये पहले हमारे काम में आये। आज नहीं तो कल मेरी इस कोशिस से यदि चार विद्धवान की जगह यदि मूर्ख व्यक्ति भी अपनी मूर्खता के बाद भी जुडता है तो मैं समझूगा कि मेरा जीवन सार्थक एवं सफल हुआ। मुझे किसी के प्रमाण पत्र की अभिनंदन की या ताप्तीरथी कहलाने की जरूरत नहीं ...... मैं तो ताप्ती मां का सपूत होने के नाते ऐसा काम करने का बीडा उठाना चाहता हू कि चार लोग मेरे साथ निकल पडे और कहे कि अब मां हमें प्यासा न रखो कुछ स्थान पर ठहरो और हमें अपने पावन जल से आंनदित करो। चलते - चलते एक फिल्मी तराना गुनगुना चाहता हूं कि उसको नहीं देख हमने कभी - लेकिन तेरी सूरत से अलग भला भगवान की सूरत क्या होगी.....। हे तापी मां हमें भगवान नही तेरी चाहत है ताकि हम अपना जीवन धन्य कर सके। एक बार फिर ताप्ती का जल रोको अभियान से जुडने का काम करे तथा अपने दिल और दिमाग कि किसी कोने में छुपे भागीरथ को सामने लाने का काम करे ताकि हम अपनी आदि गंगा को अपने जिले के हर गांव - खेत - गौठान - खलिहान - घर के आगन तक ला सके। जय ताप्ती माता रानी की।

Thursday, January 27, 2011

देश - प्रेम की मिसाल है बैतूल जिले का ग्राम अंधारिया तीनो सेनाओं में कार्यरत है गांव के युवक - युवतियां


देश - प्रेम की मिसाल है बैतूल जिले का ग्राम अंधारिया
 तीनो सेनाओं में कार्यरत है गांव के युवक - युवतियां
बैतूल : मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की आमला तहसील का अंधारिया ग्राम पूरे देश भर में एक मिसाल है अपने देश - प्रेम के लिए।  बैतूल जिले के इस ग्राम में रहने वाले हर परिवार के सदस्य भारतीय तीनो सेवाओं में पदस्थ होने के साथ - साथ सशस्त्र पुलिस बल एवं अर्ध सशस्त्र पुलिस बलो एवं सीमा सुरक्षा बलो तथा औद्योगिक सुरक्षा बलो में भी अपनी सेवायें दे रहे है। ग्राम के सबसे अधिक लोग एयर फोर्स में कार्यरत है। बैतूल जिले में स्थित बोडख़ी आमला एयर फोर्स स्टेशन की स्थापना के बाद जाग राष्ट्र प्रेम इन लोगो के बीच आज भी कायम है। गांव ने देश के लिए अपने सपूतो को भी समर्पित करके अपनी अलग पहचान बनाई है। सबसे चौकान्ने वाली बात यह है कि इस गांव के युवको के हौसले से दो कदम आगे निकल कर गांव की लड़कियां भी अब देश सेवा के लिए झांसी की रानी की तरह मैदान में कुद पड़ी है। फौजियों के गांव के रूप में पहचाने जाने वाले गांव के एक फौजी ने सेना सर्वोच्च पद प्राप्त करके गांव का ही नहीं बल्कि पूरे बैतूल जिले का नाम रोशन किया है। सेवानिवृत मेजर जनरल डाँ आर एन सूर्यवंशी ने एम बी ए , एम एम एस , एम एम सी , पी जी डी डब्लयू एण्ड इ , एल डी एम सी एवं एस आई डी एम सी का प्रशिक्षण सयुंक्त राष्ट्र संघ से  प्राप्त करने के बाद वे कई पदो एवं पदको से सम्मानित किये जा चुके है। डां सूर्यवंशी वर्तमान इन्दौर के पास महु में निवास कर रहे है। डां सूर्यवंशी को गर्व है कि आज उनकी जन्मभूमि ग्राम अंधारिया के युवक - युवतियां भी सेना में शामिल होकर अपनी अलग पहचान बना रहे है।
यूं तो अंधारिया ग्राम की आबादी लगभग तीन हजार है लेकिन गांव का एक भी ऐसा परिवार नहीं है जिसका अपना कोई देश की सेवा में कहीं न कहीं पदस्थ न होगा। ग्राम की आदिवासी महिला सरपंच श्रीमति सुशीला इंगले को अपने गांव पर गर्व है। कम पढ़ी लिखी इस महिला के भी परिजन देश सेवा में पदस्थ है। गांव की तीन लाड़ो सीमा सुरक्षा बल एवं सशस्त्र सुरक्षा में बल में पदस्थ है। वे जब भी अपनी वर्दी पहन कर गांव में आती है तो पूरा गांव उनके स्वागत सत्कार को दौड़ पड़ता है।  सबसे ज्यादा अति उत्साही गांव के शिक्षक है जो कि सीना तान कर कहते है कि उनके पढ़ाये बच्चे कहां - कहां पर पदस्थ है। बैतूल जिले का एक मात्र फौजियो का गांव अंधारिया पूरे देश में अपनी अलग पहचान बनाये हुयें है। बैतूल जिले के सेवा निर्वृत सैनिक एवं बैतूल विधान सभा क्षेत्र के पूर्व विधायक शिवप्रसाद राठौर कहते है कि बैतूल जिले का गुलाम भारत में आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान रहा है और इस समय भी आजाद भारत की सुरक्षा के लिए जिले के कई सपूतो ने अपने प्राणो को न्यौछावर कर दिया। श्री राठौर कहते है कि त्याग और सर्मपण का भाव केवल सैनिको में ही नहीं बल्कि पूरे देशवासियों में होना चाहिये।    

बैतूल जिले में बड़े पैमाने पर हो रहा है अवैध खांड़सारी मिलो द्वारा कारोबार : खामोश है पूरे सरकारी विभाग , किसानो का हो रहा शोषण


बैतूल जिले में बड़े पैमाने पर हो रहा है अवैध खांड़सारी मिलो द्वारा कारोबार : खामोश है पूरे सरकारी विभाग , किसानो का हो रहा शोषण

बैतूल : प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के अधिनस्थ कार्यरत गुड़ उत्पादक विभाग एवं प्रदुषण विभाग की बिना अनुमति के एक नहीं पूरे 176 खांड़सारी एवं शक्कर की उत्पादक मिलो का अवैध कारोबार बैतूल जिले के आमला विकासखण्ड में धडल्ले से चल रहा है। बैतूल जिले की शासकीय एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के गरीब किसानो से किराये पर ली गई जमीन पर उत्तर प्रदेश के एक मात्र बदायु जिले से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के करीब पौने दौ सौ लोगो द्वारा संचालित इन खांड़सारी मिलो में सारे नियमों को ताक में रख कर बड़े पैमाने पर अध कच्चा गुड़ का जिसे खांड़सारी अथवा राब भी कहते है का उत्पादन कर उत्तर प्रदेश , बिहार , पश्चिम बंगाल को भेजा जा रहा है। औसतन प्रतिदिन दस से बारह ट्रको से छिन्दवाड़ा होते हुये परिवहन किये जाने वाले ट्रक मालिको एवं विके्त्रा द्वारा कृषि उपज मंडी तथा सेल टैक्स विभाग को कोई शासकीय शुल्क चुकाया जाता है।  जहां एक ओर राजनैतिक संरक्षण में चल रहे है इन खांड़सारी मिलो के संचालको द्वारा समय - समय पर किसानो के साथ कथित धोखाधड़ी किये जाने के भी मामले प्रकाश में आ रहे है वही दुसरी ओर इनके द्वारा हर साल नये स्थान पर नए नाम के साथ अपनी मिलो को स्थापित भी किया जा रहा है ताकि किसानो में भ्रम की स्थिति बनी रहे। बीते वर्ष 2010 में छिन्दवाड़ा जिले के एक ही ग्राम चांद के सौ से अधिक किसानो के साथ धोखाधड़ी का मामला भी प्रकाश में आया है। चांद गांव के किसी शैलू पटेल के कथित संरक्षण में चल रही एक खांड़सारी मिल के संचालक द्वारा करीब 25 लाख रूपये का गन्ने का भुगतान किये बिना ही नौ दो ग्यारह हो जाने से किसानो के परिवारो को भूखे मरने की स्थिति आ गई थी। उक्त खांड़सारी मिल के संचालक द्वारा इस बार बैतूल जिले के आमला विकासखड़ के जम्बाड़ा ग्राम में अपनी मिलो को स्थान परिर्वतन कर लगाया गया है। बैतूल जिले में चार से छै माह तक अस्थायी रूप से लगने वाली इन अवैध खांड़सारी मिलो द्वारा पूरा काला कारोबार ग्राम एवं तहसील तथा जिले के कुछ तथाकथित स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियो , वकीलो , पत्रकारो , राजनैतिक दलो के नेताओं, तथा शासकीय विभागो के आला अफसरो के संरक्षण में चल रहे इस अवैध कारोबार के चलते किसानो द्वारा अपने गन्ने से न तो गुड़ का उत्पादन किया जा रहा है और न उत्पादन करवा कर गुड़ को मुलताई एवं बैतूल बाजार की गुड़ मंडिय़ो में लाकर बेचा जा रहा है। बड़े पैमाने पर दबाव डाल कर या तरह - तरह के लोभ लालच देकर किसानो का खेतो में लगा गन्ना अपने लोगो से कटवा कर अवैध रूप से परिवहन में लगे बिना नम्बरो के टैक्टर ट्रालियो से लाकर मिलो में पहुंचाया जा रहा है। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि बैतूल जिले के अकेले आमला विकासखण्ड में पौने दो सौ अवैध खांड़सारी की मिलो में एक क्षेत्र विशेष के एक ही समुदाय के सैकड़ो लोग बोरदेही एवं आमला थाना में अपनी मुसाफिरी लिखवाये बिना ही रह रहे है। इन लोगो के पास अवैध रूप से हथियारो का जखीरा लोगो को डराने एवं धमकाने के अलावा अपने कारोबार की तथाकथित सुरक्षा के नाम पर एकत्र कर रखा है। अकसर कम दाम पर किसानो का गन्न अपनी - अपनी खांडसारी मिलो के लिए खरीदने के चलते इन लोगो के बीच गैंगवार की स्थिति भी अकसर बन जाती है। भाजपा शासन काल में प्राकृतिक आपदा के चलते किसानो की लगातार मौते के बीच किसानो का कम भाव में गुण्डागर्दी एवं डरा धमका कर खरीदे जाने वाले गन्ना एवं अवैध खांडसारी मिलो की जानाकारी राज्य एवं केन्द्र सरकार के बैतूल जिले के कार्यरत कृषि विभाग , कृषि उपज मंडियो , खाद्य विभाग विभाग , नापतौल विभाग , पुलिस विभाग , सेल टैक्स विभाग , इनकम टैक्स विभाग सहित पूरे सरकारी मोहकमे को रहने के बाद भी पूरा कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। अंतराज्यीय खांड़सारी , राब , शक्कर के परिवहन तथा व्यापार के बदले सभी को कुछ न कुछ इस अवैध काले कारोबार से मिलता है। बैतूल जिले के इस काले कारोबार में भारतीय लोगो की साझेदारी तो समझ में आती लेकिन अब तो इस कारोबार में अप्रवासी भारतीय भी कुद गये है। आमला - बोरदेही मार्ग पर चुटकी - खतेड़ा जोड़ में हाजी साहब नामक अप्रवासी भारतीय द्वारा पिछले तीन सालो से जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन को जानकारी दिये बिना ही कारोबार बिना किसी रोक - टोक के संचालित किया जा रहा है। इस वर्ष हाजी साहब द्वारा अपने कारोबार को बरेली के किसी बड़े करोड़पति को बेच कर पुन: अपनी नई खांड़सारी मिल को स्थापित किया जा रहा है। नजूल की जमीन पर कथित लीज लेकर स्थापित खांड़सारी मिल के स्थापना के पूर्व गन्ना उत्पादक विभाग एवं प्रदुषण विभाग की अनुमति के बिना चल रही इस प्रकार की मिलो से जिले के किसानो के गन्ने का गुड़ नहीं बन पा रहा है।

बैतूल जिले में बड़े पैमाने पर हो रहा है अवैध खांड़सारी मिलो द्वारा कारोबार : खामोश है पूरे सरकारी विभाग , किसानो का हो रहा शोषण


बैतूल जिले में बड़े पैमाने पर हो रहा है अवैध खांड़सारी मिलो द्वारा कारोबार : खामोश है पूरे सरकारी विभाग , किसानो का हो रहा शोषण

बैतूल : प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के अधिनस्थ कार्यरत गुड़ उत्पादक विभाग एवं प्रदुषण विभाग की बिना अनुमति के एक नहीं पूरे 176 खांड़सारी एवं शक्कर की उत्पादक मिलो का अवैध कारोबार बैतूल जिले के आमला विकासखण्ड में धडल्ले से चल रहा है। बैतूल जिले की शासकीय एवं अनुसूचित जाति एवं जनजाति के गरीब किसानो से किराये पर ली गई जमीन पर उत्तर प्रदेश के एक मात्र बदायु जिले से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के करीब पौने दौ सौ लोगो द्वारा संचालित इन खांड़सारी मिलो में सारे नियमों को ताक में रख कर बड़े पैमाने पर अध कच्चा गुड़ का जिसे खांड़सारी अथवा राब भी कहते है का उत्पादन कर उत्तर प्रदेश , बिहार , पश्चिम बंगाल को भेजा जा रहा है। औसतन प्रतिदिन दस से बारह ट्रको से छिन्दवाड़ा होते हुये परिवहन किये जाने वाले ट्रक मालिको एवं विके्त्रा द्वारा कृषि उपज मंडी तथा सेल टैक्स विभाग को कोई शासकीय शुल्क चुकाया जाता है।  जहां एक ओर राजनैतिक संरक्षण में चल रहे है इन खांड़सारी मिलो के संचालको द्वारा समय - समय पर किसानो के साथ कथित धोखाधड़ी किये जाने के भी मामले प्रकाश में आ रहे है वही दुसरी ओर इनके द्वारा हर साल नये स्थान पर नए नाम के साथ अपनी मिलो को स्थापित भी किया जा रहा है ताकि किसानो में भ्रम की स्थिति बनी रहे। बीते वर्ष 2010 में छिन्दवाड़ा जिले के एक ही ग्राम चांद के सौ से अधिक किसानो के साथ धोखाधड़ी का मामला भी प्रकाश में आया है। चांद गांव के किसी शैलू पटेल के कथित संरक्षण में चल रही एक खांड़सारी मिल के संचालक द्वारा करीब 25 लाख रूपये का गन्ने का भुगतान किये बिना ही नौ दो ग्यारह हो जाने से किसानो के परिवारो को भूखे मरने की स्थिति आ गई थी। उक्त खांड़सारी मिल के संचालक द्वारा इस बार बैतूल जिले के आमला विकासखड़ के जम्बाड़ा ग्राम में अपनी मिलो को स्थान परिर्वतन कर लगाया गया है। बैतूल जिले में चार से छै माह तक अस्थायी रूप से लगने वाली इन अवैध खांड़सारी मिलो द्वारा पूरा काला कारोबार ग्राम एवं तहसील तथा जिले के कुछ तथाकथित स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियो , वकीलो , पत्रकारो , राजनैतिक दलो के नेताओं, तथा शासकीय विभागो के आला अफसरो के संरक्षण में चल रहे इस अवैध कारोबार के चलते किसानो द्वारा अपने गन्ने से न तो गुड़ का उत्पादन किया जा रहा है और न उत्पादन करवा कर गुड़ को मुलताई एवं बैतूल बाजार की गुड़ मंडिय़ो में लाकर बेचा जा रहा है। बड़े पैमाने पर दबाव डाल कर या तरह - तरह के लोभ लालच देकर किसानो का खेतो में लगा गन्ना अपने लोगो से कटवा कर अवैध रूप से परिवहन में लगे बिना नम्बरो के टैक्टर ट्रालियो से लाकर मिलो में पहुंचाया जा रहा है। सबसे चौकान्ने वाली बात तो यह है कि बैतूल जिले के अकेले आमला विकासखण्ड में पौने दो सौ अवैध खांड़सारी की मिलो में एक क्षेत्र विशेष के एक ही समुदाय के सैकड़ो लोग बोरदेही एवं आमला थाना में अपनी मुसाफिरी लिखवाये बिना ही रह रहे है। इन लोगो के पास अवैध रूप से हथियारो का जखीरा लोगो को डराने एवं धमकाने के अलावा अपने कारोबार की तथाकथित सुरक्षा के नाम पर एकत्र कर रखा है। अकसर कम दाम पर किसानो का गन्न अपनी - अपनी खांडसारी मिलो के लिए खरीदने के चलते इन लोगो के बीच गैंगवार की स्थिति भी अकसर बन जाती है। भाजपा शासन काल में प्राकृतिक आपदा के चलते किसानो की लगातार मौते के बीच किसानो का कम भाव में गुण्डागर्दी एवं डरा धमका कर खरीदे जाने वाले गन्ना एवं अवैध खांडसारी मिलो की जानाकारी राज्य एवं केन्द्र सरकार के बैतूल जिले के कार्यरत कृषि विभाग , कृषि उपज मंडियो , खाद्य विभाग विभाग , नापतौल विभाग , पुलिस विभाग , सेल टैक्स विभाग , इनकम टैक्स विभाग सहित पूरे सरकारी मोहकमे को रहने के बाद भी पूरा कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। अंतराज्यीय खांड़सारी , राब , शक्कर के परिवहन तथा व्यापार के बदले सभी को कुछ न कुछ इस अवैध काले कारोबार से मिलता है। बैतूल जिले के इस काले कारोबार में भारतीय लोगो की साझेदारी तो समझ में आती लेकिन अब तो इस कारोबार में अप्रवासी भारतीय भी कुद गये है। आमला - बोरदेही मार्ग पर चुटकी - खतेड़ा जोड़ में हाजी साहब नामक अप्रवासी भारतीय द्वारा पिछले तीन सालो से जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन को जानकारी दिये बिना ही कारोबार बिना किसी रोक - टोक के संचालित किया जा रहा है। इस वर्ष हाजी साहब द्वारा अपने कारोबार को बरेली के किसी बड़े करोड़पति को बेच कर पुन: अपनी नई खांड़सारी मिल को स्थापित किया जा रहा है। नजूल की जमीन पर कथित लीज लेकर स्थापित खांड़सारी मिल के स्थापना के पूर्व गन्ना उत्पादक विभाग एवं प्रदुषण विभाग की अनुमति के बिना चल रही इस प्रकार की मिलो से जिले के किसानो के गन्ने का गुड़ नहीं बन पा रहा है।

Wednesday, January 26, 2011

जब राजा भोज को सम्मान के लिए लग गये एक हजार साल गये तब वागदेवी को लाने में लगेगें कितने हजार साल









जब राजा भोज को सम्मान के लिए लग गये एक हजार साल
गये तब वागदेवी को लाने में लगेगें कितने हजार साल
रामकिशोर पंवार की विशेष रिर्पोट
मध्यप्रदेश का गुजराज एवं राजस्थान से लगा सीमावर्ती जिला धार जिला किसी जमाने में कला एंव संस्कृति का केन्द्र था. महान पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य के वशंज राजा भोज ने अपने पुरखों की तरह कला एंव संस्कृति को एक नया आयाम दिया. राजा भोज द्धारा अपनी अपनी अराध्य देवी वाग्देवी की पूजा अर्चना के लिए स्थापित भोजशाला आज भी कला संस्कृति की बेजोड मिसाल है. राजा भोज ने जो ताल बनवाया था उस झील के शहर में राजा भोज को मिलने वाले कथित सम्मान के लिए उन्हे एक दो नहीं बल्कि पूरे एक हजार साल लग गये। प्रदेश सरकार को अचानक राजा भोज याद आ गये। गंगू तेली की घानी में राजा भोज के मान - सम्मान को रौदंती भाजपा को ही राजा को उसके ही राज्य में मान सम्मान दिलाने के बरसो इंतजार करना पडा। जिस राजा भोजपुर - भोजपाल जो बाद में भोपाल कहलाया उसके बडे तालाब के बीचो - बीच खडे रहने के लिए इतना इंतजार करना पडा कर राजा की प्रतिमा के आंखो से झर - झर कर आंसु बहने लगे लेकिन भगवा सरकार को पत्थरो से आंसुओ का बहना - मुर्तियो का दुध पीना अधंविश्वास सा लगता है और लगे भी क्यों न जो सरकार राम के नाम पर सत्ता हासिल करती है वह सत्ता में आने के बाद राम को ही भूल जाती है। ऐसे में कल तक ब्रिट्रेन के म्यूजियम में पडी राजा भोज की कुलदेवी मां सरस्वती की मूर्ति स्वदेश लाने की वकालत करने वाली भाजपा के मुख्यमंत्री ब्रिट्रेन जाने के बाद मूर्ति को देखना तक भूल गये। राजा भोज के राज में स्थित भाईचारे की मिसाल बना भोजपाल आज का भोपाल से कई गुणा कला संस्कृति का केन्द्र रही धार नगरी है जो राजा भोज की पहचान है। राजा भोज की भोजशाला में आज भी स्वर्गीय इकबाल की पंक्तियां सटीक बैठती है कि मजहब नहीं सीखता आपस में बैर रखना। आज भी धार की इस एतिहासिक भोजशाला बनाम कमाल मौला मस्जी़द का में पुनः स्थापित होने के लिए राजा भोज की कुलदेवी को प्रदेश सरकार की राह देखते - देखते बरसो गुजर गये है। अग्रेंजो द्वारा धार से ले गई राजा भोज की कुलदेवी की प्रतिमा को स्वदेश लाने का जितनी बार भाजपा वादा करती आई है वह उतनी ही बार राजा भोज की कुलदेवी को भूली है। आज भले राजा भोज की भोजशाला सियासी विवाद का हिस्सा बनी हुई है लेकिन राजा भोज की कुलदेवी मां वाग्यदेवी सरस्वती के स्वदेश लाने पर किसी को विवाद नहीं है। वैसे देखा जाये तो भोजशाला के स्थान का विवाद आज का नहीं है. करीब छह सौ साल से भी अधिक पुराना एक ताबूत में दफन किया गया हुआ जिन्न है। जिसे हर कोई मजहब की आड में ताबूत से बाहर निकाल कर अपना उल्लू साधने में लग जाता है। इस भोजशाला के लिए मां बाग्देवी के उपासक उसके संरक्षण तथा आधिपत्य के लिए कानूनी दांवपेचों की लड़ाई लड रहे है। यह विवाद उस समय पैदा हुआ जब तत्कालीन दीवान नाड़कर ने यह तस्दीक की थी कि भोजशाला में तथा कथित नमाज पढ़ी जाती थी एंव इस स्थान पर किसी कमाल मौला नामक फकीर की तथा कथित कब्र है। इन बातों की तथाकथित पुष्टि होने पर वर्षो पुराने इस विवाद को पुनः हवा मिली थी लेकिन कोई भी भोजशाला की राम कहानी लेकर बैठ जाता है पर वह बाग्यदेवी को हर बार भूल जाता है।
    अयोध्य में विवादित ढंाचा ढहाए जाने के बाद बीते कई दशक से तो यहंा प्रतिवर्ष बसंत पंचमी का दिन दहशत में बीतता है। कब हिन्दु - मुस्लिम सौहार्द साम्प्रदायिकता का रंग ले ले इस बात की शंका - कुशंका हमेशा बनी रहती है। प्रदेश भाजपा सरकार रहने पर राजा भोज की धारा नगरी वर्तमान धार शहर में राजा भोजशाला की तथा कथित मुक्ति को लेकर कई बार हिन्दुवादी संगठनो की यहां पर रीति - नीति बनती है लेकिन कोई भी हिन्दु नेता उस मूर्ति के लिए कभी कोई नीति - रीति नहीं बनाता है। राजा भोज की बसाई धारा नगरी में कई बार इस बात को लेकर प्रयास भी हुये कि इस नगरी में सम्प्रदायिकता की आग को भडकाने वाली धारा को बहाया जाय लेकिन वह आज तक नहीं बह सकी है। कोई माने या न माने लेकिन सच आइने की तरह साफ है कि धार नगरी में राजा भोज की नीति - रीति आज भी राज पाट करती है।
            इतिहास के पन्नो को यदि हम पलटते है तो हमे पता चलता है कि पंवार राजपूतों के शीर्ष राजा भोज द्वारा बसाई धारा नगरी में इस वंशज के महान सम्राट राजा भोज ने 11 वीं शताब्दी में भोजशाला का निर्माण करवाया था। राजा भोज का राज भोजपाल वर्तमान भोपाल एवं भोजपुर तक फैला हुआ था। धार गजेटियर में यह उल्लेख मिलता है कि इस भोजशाला का निर्माण सन् 1034 में हुआ था। 1334 में जब मुस्लिम शासक यहां की सत्ता पर काबिज थे। उस दौर में कमाल मौला नामक संत ने इसे मस्जिद में तब्दील करने का प्रयास किया था। राजा भोज के कार्यकाल में उनके अवसान के बाद उनके कुल के पंवार राजपूतो का काफिला धर्मपरिवर्तन के डर से धार छोड कर निकल पडा जो नर्मदा को पार करके पंवारखेडा में बसा । यहां से पंवारो का काफिला बैतूल - छिन्दवाडा - बालाघाट - सिवनी - गोंदिया - नागपुर होते हुये कर्नाटक तक जा पहुंचा। कुछ पंवार राजपूतो द्वारा धार छोड कर जाने के बाद भी पंवारो का धार - देवास पर राज्य कायम रहा। बीती सदी में सन् 1904 में इसे राज्य संरक्षित पुरातत्वीय स्मारक घोषित किया गया। इसके बाद सन् 1935 में जब धार में आनंद राव पवार राजा थे, तब उनके दीवान नाड़कर ने एक गजट प्रकाशित कर इस बात की तस्दीक की कि यहां जिस तरह नमाज पढ़ी जा रही है वह जारी रहेगी। दरअसल उस समय राज्य के लोक निमार्ण विभाग ने भोजशाला मस्जिद कमाल मौला और कमाल मौला के मकबरे के बाहर भोजशाला को तख्ती लगा दी थी। इस पर मुस्लिम समुदाय ने आपत्ति की थी। तब 24 अगस्त 1935 को गजट प्रकाशित किया गया था। इस गजट के बिन्दु क्रमांक 973 में इस बात का उल्लेख है कि जो नमाज पढ़ी जा रही है वह जारी रहेगी और यह मस्जिद है और आइंदा भी मस्जिद रहेगी। दीवान नाड़कर के इस तरह के गजट प्रकाशन से दोनों समुदाय खफा हो गयें। हिन्दु समुदाय का मानना है कि उन्होने अपने अधिकारों का अतिक्रमण कर कतिपय मुस्लिमों के दबाव में वह गजट प्रकाशित किया उन्हें गजट प्रकाशन का अधिकार नही था क्योकि उस समय धार के राजा आनंद राव पवार अवयस्क थे और उनकी मदद के लिए कैबिनेट बनी थी। इस तरह का कोई भी फैसला कैबिनेट को लेना था , दूसरी ओर मुस्लिम समाज की आपत्ति है कि दीवान नाड़कर ने ही यहां भोजशाला के नाम की तख्ती लगाकर मस्जिद को भोजशाला बताया। इसके बाद बड़ी मुश्कील से इस विवाद को अग्रेंजी हुकुमत ने इस विवाद को शांत करवाया लेकिन यह तभी सभंव हुआ जब राजा दरबार में दोनो मजहब के लोगो के बीच सुलह हुई। अग्रेंजी हुकुमत के बदलते ही सन् 1951 में राजा भोज की इस भोजशाला को पुरातन और ऐतिहासिक स्मारक और पुरातत्व अधिनियम के दायरें में लाकर इस अधिनियम के क्रम 90 पर यह इमारत भोजशाला एवं कमाल मौला मस्जिद के नाम से अंकित की गई। इसके बाद सन् 1962 में धार के प्रथम अतिरक्त न्यायाधीश के समक्ष मुस्लिम समाज की ओर से अमीरूदीन वल्द जबीरूदीन ठेकेदार ने एक वाद दायर किया इसमें प्रतिवादी केन्द्र व राज्य सरकार को बनाया गया। इसमें मुस्लिम समाज ने दावा किया कि उक्त इमारत मस्जिद है यहां रोजाना नमाज पढ़ी जा रही हैं इसे 1307 में अलाउदीन खिलजी के जमाने में बनाया गया था इस वाद के सिलसिले में केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से भी दावा को नकारते हुए कहा गया था कि भोजशाला राजा भोज के समय थी। यहां संस्कृत का अध्ययन होता था व्याकरण के सूत्र अभी भी खंभों पर अंकित है। यह शासन की सम्पति थी। यहां लगी मां बाग् देवी सरस्वती की प्रतिमा वर्तमान में लंदन के केन्द्रीय संग्रहालय में मौजूद है। उसे स्वदेश लाने के लिए आज तक किसी ने भी न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया। भोजशाला के पास ही एक मकबरा भी है जो कमाल मौला की कब्र मकबरा के नाम से जाना जाता हैं। इस भोजशाला का अधिग्रहण केन्द्र सरकार ने सन् 1904 में किया था। यह मामला सन् 1965 तक चलता रहा बाद में वादी की लगातार अनुपस्थिति के कारण मामला खारिज कर दिया गया। भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में भोज उत्सव की शुरूआत हुई। उस समय स्थानीय विधायक विक्रम वर्मा प्रदेश मंत्रिमंडल के सदस्य थे। उन्होंने संस्कृत अकादमी के बैनर तले यहां विचार गोष्ठी आयोजित करवाई थी। सबसे आश्चर्य जनक तथ्य को दोनो प़ा नकारते चले आ रहे है वह यह है कि राजा भोज के द्वारा स्थापित भोजशाला को बनाने वाले पंवार राजवंश को आज तक इस विवाद से परे रखा जाना। उस समय तत्कालिन महाराजा आनंदराव जी पंवार के नाबालिग होने की स्थिति में जब केबिनेट कोई हल नहीं कर पाई तब उसके पूरखों द्वारा स्थापित भोजशाला को अगर अग्रेंजी हुकुमत चाहती जो राजा साहब की पैतृक सम्पति मान कर उन्हे ही सौप देती तब भले ही राजा स्व विवेक से जिसे चाहे उसे देते क्योकि दान में दी गई किसी भी प्रकार की सम्पति का जब हस्तांतरण हो जाता है तब वह विवाद का केन्द्र नहीं रहती। आज भी इस बरसों पुराने विवाद का एक सूत्रिय हल है वह यह कि पंवार राजवंश मौला कमाल के पहले भी स्थापित था तथा बाद में भी तब इस बात पर बेमतलब की बहस करने से क्या फायदा......! राजा भोज की इस पाठशाला को पंवार राजवंश की पैतृक सम्पति मान कर उसे राजवंश के उत्तराधिकारी युवराज डा. करण सिंह राजे को सौप कर उसमें लंदन से मां बाग्देवी की प्रतिमा को स्थापित करवा कर उसे मां कालिका देवी ट्रस्ट  की तरह पंजीकृत करवा कर उसे सभी आम जनता के दर्शनार्थ के लिए सौप दी जायें. मध्यप्रदेश के रामभक्त एवं स्वंय को हिन्दुवादी नेता समझने वाले संघ की विचारधारा से जुडे प्रदेश के मुखिया अपने मुख्यमंत्री काल में लंदन जाने के बाद भी राजा भोज की कुलदेवी मां बाग देवी की प्रतिमा को उस संग्राहलय से नहीं ला पायें जहां पर वह आज भी अपने वतन को आने को पलके पावडे बिछाये इंतजार कर रही है। कहने को हर कोई शेख चिल्ली बन जाता है लकिन जब बारी आती है तो वहीं भिगी बिल्ली बन जाता है। पंवारो के इतिहास की सबसे बडी प्रमाणिक धरोहर राजा भोज की कुलदेवी की प्रतिमा कब धार में तथा धार से धर्मान्तरण के डर से भागे पंवार वापस अपने वतन को लौटेगं यह सब कह पाना अतीत के घेरे में है। अब यदि प्रदेश की भाजपा सरकार राजा भोज को मान सम्मान देने के लिए आगे आई है तो उसका स्वागत करना चाहिये क्योकि देर सबेर आखिर अक्ल आई तो सही। अब प्रदेश सरकार को धार का भी मान - सम्मान को लौटाने के लिए आगे आना चाहिये। आज जरूरत इस बात की है कि धार को कला एवं संस्कृति का केन्द्र बना कर उसे पुनः उस शिखर पर पहंुचाये जहां पर वह थी और इसके लिए सबसे जरूरी है कि मां वाग्यदेवी की मूर्ति को स्वदेश वापस लाने का इमानदारी पूर्वक प्रयास किया जाये।

Saturday, January 22, 2011

26 जनवरी से बैतूल जिले का पहला यू एफ टी वेब न्यूज चैनल इंटरनेट पर





             26 जनवरी से बैतूल जिले का पहला यू एफ टी वेब न्यूज चैनल इंटरनेट पर
बैतूल। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का पहला अतंराष्ट्रीय वेब न्यूज एवं व्यू चैनल यू एफ टी न्यूज डाट काम आगामी 26 जनवरी 2011 से काम करना शुरू कर देगा। उक्त जानकारी देते हुये बेव पोर्टल के डायरेक्टर बज्रकिशोर पंवार डब्बू ने बताया कि बैतूल जिले के वरिष्ष्ठ पत्रकार एवं लेखक रामकिशोर पंवार द्वारा संचालित एवं संपादित इस बेव पोर्टल पर रामकिशोर पंवार की पत्रकारिता एवं लेखन के 27 वर्षो का लेखा - जोखा तो होगा ही साथ ही उनके संपादन एवं निर्देशन में बैतूल जिले की ही नहीं प्रादेशिक - राष्ट्रीय - अंतराष्ट्रीय खबरो के अलावा कई महत्वपूर्ण समाचारो के वीडियो फूटेज भी रहेगें। बैतूल जिले से शुरू हो रहे इस बेव पोर्टल का पंजीयन हाल ही में बेव गुरू के सहयोग से किया गया। जिले की यह एक मात्र पहली बेव पोर्टल न्यूज एवं व्यू सर्विस रहेगी जो पाठको के आलवा देश - विदेश के समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ के साथ - साथ न्यूज एजेंसियों को भी न्यूज एण्ड व्यू भेजा करेगी। सूर्यपुत्री मां ताप्ती को समर्पित बैतूल जिले के इस पहले बेव पोर्टल के लिए पूरे देश भर में संवाददाताओं एवं न्यूज चैनल रिर्पोटरो की टीम तैयार की जायेगी जो एक साथ वीडियो एवं वेब न्यूज के संकलन का भी काम करेगी। रामकिशोर पंवार द्वारा संचालित एवं निर्देशित इस बेव चैनल पर रामकिशोर पंवार की रहस्यमय सत्यकथायें , कहानियां , लेख एवं अब तक के सर्वश्रेष्ठ समाचारो एवं आलेखो की सचित्र रिर्पोटो को भी स्थान दिया जा रहा है। इस बेव चैनल के द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर संवाददाताओं , कैमरामेनो , का नेटवर्क स्थापित किया जायेगा। पहले चरण में मध्यप्रदेश एवं छत्तिसगढ़ के सभी जिलो की ग्राम पंचायतो को लिया जा रहा है। शासन की विभिन्न योजानाओं के अलावा ग्रामिण जनप्रतिनिधि का एक साक्षात्कार के साथ - साथ एक आला अफसर और मंत्री की भी मुलाकातो को भी स्थान दिया जायेगा। जनता एवं शासन के बीच मध्यस्थता करने में सहायक सिद्ध होने वाले बैतूल जिले के एक मात्र बेव पोर्टल पर देश - प्रदेश - जिले के समाचार पत्रो को भी सीधे जोड़ा जायेगा। हिन्दी के अलावा अग्रेंजी में भी इस वेब पोर्टल पर खबरो का अच्छा खासा ढांचा तैयार किया जायेगा। रामकिशोर पंवार के अनुसार इस बेव पोर्टल का निमार्ण कार्य तेजी से चल रहा है। इसे हर हाल में 26 जनवरी को इंटरनेट पर प्रस्तुत कर दिया जायेगा। आदिवासी कला संस्कृति एवं सूर्यपुत्री मां ताप्ती महिमा से ओतप्रोत इस बेव चैनल पर गांव - शहर - जिला - प्रदेश - देश - दुनिया दिन की भी खबरो के भी फूटेज एवं समाचार एक साथ देखने एवं पढऩे को मिल जायेगें । बैतूल जिला मुख्यालय पर दादा जी की कुटी खंजनपुर  मालवीय वार्ड जिला बैतूल से संचालित इस वेब पोर्टल के लिए मासिक वेतन पर सर्शत नागरिक - ग्रामिण - शहरी -तहसील - जिला - संभागीय - राजधानी स्तर पर संवाददाताओं की नियुक्ति की जायेगी।




January 26 Betul district of the first UK
web news channels UFT Aon the Internet
Betul. 22 Jan.2011 {M.P.] Betul district of Madhya Pradesh, tribal wealth and view the first Atanrshtryy Web News Channel U F T News.com A News stopper cut will be operational by next January 26, 2011. Would find such information Betul district Arishsht powered by journalist and author Mr Ramkishore Pawar. Mr Pawar the Web portal's account of the journalism and writing 27 years - there must be Jokha Betul district as well as their editing and directing, not just regional - National - International Akbro addition to the many important Samacharo Arhagean video footage. Betul district starting from the registration of the Web portal recently been supported by Web master. News of the district the only first web portal and view the Readers of service will Alwa country - abroad with Newspaper and magazines - with the news agencies will also send news and view. Suryputri mother Tapti Betul district's first web portal dedicated to the reporters and news channels across the country will be ready Riarpotro team who together will work to compile the video and web news. Powered by and directed at the web channel Ramkishore Pawar mysterious Satikthayean, stories, articles and so far the best illustrated Alekho Arirpoto Samacharo and also being ranked. Gram Panchayat level through the Web channel, reporters, Camarameno, the network will be established. Madhya Pradesh and all districts in the first phase of the Village Panchayto Chttisgdh being taken. In addition to various rule Yojanaoan rural public representatives with an interview - with a top officer and the Minister will also Mulakato also ranked. Helped to mediate between the public and government to a single Web portal in the Betul district of the country - state - Newspaper of the district also will be added directly. In addition to Hindi Agrenji Akbro of this web portal will be a significant structure. According to the creation of the web portal Ramkishore Pawar work is going fast. In any case, on January 26 it will be presented on the Internet. Aboriginal Art Culture and Tapti Suryputri mother steeped in glory this web channel Village - City - District - State - Country - World Day of the Akbro see the footage and news together and get Zayegean attending. Betul district headquarters Grandpa's Grotto Khanjanpur Malviya Ward Betul district operates the Web portal, conditional on monthly salary Citizen - Rural - Urban - Tehsil - District - Divisions - Capital levels of correspondents will be appointed.

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Friday, January 21, 2011

अप्रवासी सैम वर्मा कहीं पाँचवे धाम के पाँचवे शंकराचार्य तो नहीं?


                  अप्रवासी सैम वर्मा कहीं पाँचवे धाम
                        के पाँचवे शंकराचार्य तो नहीं?
                                रामकिशोर पंवार  ''रोंढ़ा वाला''

हिन्दू धर्म के प्रति इतना पागल होता है कि उसेे अपने अच्छे बुरे का ज्ञान तक नहीं होता है। लोगो के इसी पागलपन को भुनाने के लिए इस देश में कुछ पैसे वालो ने भगवान के नाम पर धंधा शुरू कर दिया है। आजकल भगवान के नाम पर मंदिर या ट्रस्ट बना कर उसकी आड़ में माल कमाने का लोगो को चस्का लग गया है। इस समय मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में एक अप्रवासी भारतीय के मंदिर की आड़ में चलने वाले अनैतिक कार्यो को लेकर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने के लिए कृत सकंल्पीत भाजपा के पूर्व सासंद एवं प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष स्वर्गीय विजय कुमार खण्डेलवाल के बीच तन गई थी जो बाद में सुलह में तब्दील हो गई। अप्रवासी भारतीय सैम वर्मा द्घारा अपनी माता की स्मृति में बनाये गए रूकिमणी बालाजी मंदिर अपनी स्थापना के समय से ही विवाद का केन्द्र बना रहा। सबसे पहले विवाद उस समय उठा जब सैम वर्मा ने अपने जन्म स्थान बैतूल बाजार का नाम बदल कर उसे बालाजीपूरम करना चाहा। सैम की इस हरकत पर पुरा गांव सैम कें खिलाफ खड़ा हो गया। इसके बाद सैम वर्मा ने  कुछ शंकराचार्यो को अपने नीजी चार्टर प्लेन से लाकर उनसे इसे भारत का पाँचवा धाम घोषित करवा लिया जबकि इस देश में केवल चार ही धाम है जिन्हे आदि शंकराचार्यो से मान्यता प्रदान की गई है। कुछ लोगो का तो आरोप था कि अपने पैसे के बल पर सैम वर्मा ने जब कुछ शंकराचार्यो से बालाजी पूरम को पांचवा धाम घोषित करवा लिया है ? अब वह आने वाले कल में शंकराचार्यो द्घारा घोषित इस तथाकथित पांचवे धाम का पांचवा शंकराचार्य तो नहीं बनना चाहता है.....? अगर वह ऐसा करता है भी तो उसे रोकने वाला कौन है ......?  सूत्र बताते है कि सैम वर्मा ने कहने के लिए तो श्री रूक्मिणी बालाजीपूरम मंदिर को ट्रस्ट का रूप दिया है लेकिन इस ट्रस्ट में सैम वर्मा के परिवार के सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा है । मंदिर की स्थापना के बाद से आज तक मंदिर का हिसाब किताब सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं किया जाना भी अपने आप में एक सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठï के समय तो यह प्रचारित किया गया था कि मंदिर में आने - जाने वाले श्रद्घालु भक्तो के जूते चप्पल मंदिर ट्रस्ट परिवार के सदस्य नि:शुल्क रखा करेगे लेकिन अब तो जूते चप्पल तक रखने के पैसे वसूले जा रहे है। मंदिर परिसर की दुकानो से किराया से लेकर उनसे मंदिर के नाम पर अकसर जबरिया चौथ वसूली की जाना भी मंदिर के पवित्र मकसदो पर पानी फेरने का काम करती है। नेशनल हाइवे 69 से कुछ दुरी पर बने भी इस मंदिर के लिए बनी अधिकांश दुकाने राष्टï्रीय राजमार्ग पर अतिक्रमण करके बनाई गई है ऐसा आरोप अकसर लगते रहा है। मंदिर कैम्पस में श्रद्घालु भक्तो के साथ किया जाने वाला व्यवहार भी इस मंदिर की प्रसिद्घी में कालिख पोतने का काम कर रहा है। अभी तक इस मंदिर में लाखों श्रद्घालु़ भक्त अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके है। दूर - दूर से लोग इस दक्षिण भारतीय शैली से बने मंदिर में अपनी आस्था के चलते खीचे चले आते है लेकिन यहाँ से जाने के बाद उनका अनुभव यहाँ की तस्वीर का दुसरा पहलूूू बयाँ करता है।
अमेरिका नागरिकता प्राप्त अप्रवासी भारतीय सैम वर्मा ने अपनी जननी स्वर्गीय श्रीमति रूक्मिणी देवी पति स्वर्गीय किशोरी लाल मेहतो की याद में अपनी जन्मभूमि बैतूल बाजार में जगतगुरू शंकराचार्यो द्घारा घोषित पाँचवा धाम बालाजीपुरम बनवाया था। इस धाम में भगवान रूक्मिणी बालाजी सहित हिन्दुओं के दर्जनो देवी देवीताओं के भव्य मंदिरों का निमार्ण किया गया है। अभी तक पिछले पाँच वर्षो में एक करोड़ से अधिक श्रद्घालु भक्त यहाँ पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके है। करोड़ो की लागत से बने रूक्मिणी बालाजी मंदिर में सैम वर्मा अनुराधा पौड़वाल नाईट से लेकर विश्व सुदंरी युक्ता मुखी को इस मंदिर की चार दिवारी में लाकर इन फिल्मी सितारों एवं गायको की आड़ में लोगो को मंदिर की ओर आर्कर्षित करने का प्रयास किया गया जो सफल भी हुआ। आज इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस मंदिर में लोगो का तमाम अटकलो - चर्चाओं एवं तकलीफो के बाद भी आना जारी है। अकसर लोग जब मंदिर आये तो जाते समय भगवान की दान पेटी में कुछ दान पुण्य करके जातें है।
इधर अंकल सैम वर्मा के जन्म स्थान बैतूल बाजार के संजय कुमार वर्मा कहते है कि सैम वर्मा को विवादों में बने रहना अच्छा लगता है। कुछ वर्ष पहले अंकल सैम वर्मा ने बैतूल नगर की कोठी बाजार स्थित मसिजद में कुछ लोगो के साथ जाकर उसकी साफ सफाई करनी चाही तो मुस्लीम बिरादरी ने इस बात का जबरदस्त विरोध किया। इन लोगो का कहना था कि मस्जीद में बिना बजू किये जाना गैर इस्लामिक है । इसी तरह अंकल सैम वर्मा ने बालाजीपुरम स्थित बालाजी मंदिर में क्रिसमस को मनाया तो कुछ हिन्दु संगठनो ने जोरदार आपित्त दर्ज की । इन लोगो का कहना है कि क्या किसी गिरजाघर मे राम जन्मोत्सव मनाया गया है जो हिन्दुओं के मंदिरो में क्रिसमस मनाया जा रहा है। अंकल सैम वर्मा ने अभी कुछ साल पूर्व अपने गृहग्राम बैतूल बाजार का नाम ही परिवर्तित करना चाहा जबकि बैतूल बाजार बैतूल जिले के एतिहासिक महत्व की दृष्टिï से तथा सबसे प्राचीन कृषि प्रधान गांव रहा है। इस गांव को तीन ओर से सापना नदी ने घेर रखा है। पूर्वोमुखी सापना इस गांव में ही जिस दिशा से आती है उसी दिशा में वापस लौट जाती है। गांव का नाम या परिवर्तित करके सैम वर्मा अपना कौन सा मातृभूमि प्रेम प्रदर्शित करना चाहते समझ के बाहर की बात है? सबसे कम उम्र के बैतूल बाजार के प्रथम नागरिक का दर्जा प्राप्त नगर पंचायत अध्यक्ष संजय कुमार वर्मा कहते है कि आज सैम वर्मा की उलजूल हरकतो की वजह से ही लगभग पुरा गांव उसका विरोधी बना हुआ है। सैम वर्मा को अनेक सवालो कटघरे में खड़ा करने वाले बैतूल बाजार के वाशिंदे आज तक यह नही समझ पाये है कि अंकल सैम आखिर बालाजी मंदिर की आड में इस गांव से चाहते क्या है? अपने ही गांव के लोगो पर ऊंगलियाँ उठाने वाले सैम वर्मा के एक भाई अप्रवासी पर कुछ वर्ष पूर्व बैतूल बाजार पुलिस ने किसी महिला के साथ बलात्कार का मामला दर्ज किया था। सैम वर्मा का व्ही.आई.पी. भवन जबसे बना है तब से आज तक किसी ना किसी विवाद को हवा देता रहा है। वैसे कहा जाता है कि अंकल सैम वर्मा ने दिल्ली की तिहाड़ा जेल में भी अपने जीवन के कुछ पल बीता चुके है।
बैतूल बाजार को मंदिरो का गांव भी कहा जाता है। गांव के अनेक बुजुर्ग व्यक्ति बताते है कि गांव के अनेक मंदिरो के रख रखाव के लिए कई साल पहले से कुछ सम्पन्न जमीदारों परिवारों के द्घारा सैकड़ो एकड़ कृषि योग्य उपजाऊ भूमि जो कि नेशनल हाइवे 69 से लगी हुई है वह दान में दी गई है। उक्त कीमती जमीन को सैम वर्मा मंदिर ट्रस्ट के नाम पर हड़पना चाहते है। कभी उक्त भूमि पर दशहरा मैदान बनाने का तो कभी केन्द्रीय विद्यालय खुलवाने का शिगुफा छोड़ते रहते है। इस समय अंकल सैम वर्मा बैतूल बाजार के अनेक जीर्ण शीर्ण होते जा रहे उनके पुश्तैनी मंदिरो की ओर ध्यान ना देकर रूक्मिणी बालाजी मंदिर की ओर ज्यादा ध्यान देने में लगे है। सैम वर्मा ने इस स्थान पर चित्रकुट से लेकर कटरा की माता रानी का डुप्लीकेट मंदिर बना रखा है ताकि जो लोग जम्मू कश्मीर ना जा सके वे बैतूल बाजार में ही वैष्णव देवी के मंदिर में देवी दर्शन कर चढ़ौती कर पुण्य लाभ बटोर सके. कुछ जानकार मानते है कि जिस तरह नकली माल बेचना कानून की न$जर में अपराध है ठीक उसी तरह का अपराध अंकल सैम वर्मा भी लाखों श्रद्घालु हिन्दु तीर्थ यात्रियों के साथ कर रहे है जो कि यहाँ पर चले आते है।

Monday, January 17, 2011

Sir bungalows are large and the rest Farmaate Dalit families of the deceased Treatment to recover the amount appealed for body blocked are put

            Sir bungalows are large and the rest Farmaate Dalit families of the deceased
                        Treatment to recover the amount appealed for body blocked are put
                                          Ramkishoar Pawar,18 Jan 2011. 
Betul. {M.P.} Aboriginal - Rlito Shivraj called the director in the rule body of his young son to a village to Kotwar rate - the rate had to swerve. Kotwar the village near which he had all his treatment because the state of any private hospital free of charge but may have been treated but the treatment caused her body to the deposits do not get not one but two days kept stopped. Poor range of Justice appealed the district head of the Dalit community representing Kalackter Office and residence of Honor, from the morning until two o'clock of the day Peone sat but neither the boss nor his villa came out this information by any staff meet any initiative. Tribal concentration of Betul District Tehsil Village Casya Dokaya Hansadehi Kotwar Sukhdev said the village to his son Dilip Ahmalapur depot while cutting trees fall injuries was serious. Dilip Pdar the district hospital for treatment, was hospitalized. Dilip died on January 16 during the treatment. Sukhdev said that the amount of treatment paid 35 rupees. Hospital management and the demand is 25 rupees. Due to poor money management by giving Pdar hospital refused to release the body. Dilip Betul district headquarters after the regional legislature Alkesh Arya recommended by Simcaco DK skills Pdar was admitted to the hospital. MLA's recommendation and the poverty line after the card by the hospital management refused to give bodies to Dilip state government plans to look at a Twanlat Palete example. Betul like the tribal district of state chief minister Shivraj Singh Atyoanday card, BPL card, Dayal card in front of a bitter truth came when humanity has become red-faced. The district where a single party and the opposition representatives Kalackter office after coming to her turned to see the need to not feel. While the service name of the second treatment in hospitals professionalism fill such a conceit that he has been dominating the cost of treatment not to collect the deceased's body rather than a full two days are held to ransom. Pdarz Missionary Hospital in the country to say so myself, the example of serving humanity by telling the country - receives grant money from abroad, millions have been going on but are not the vision of humanity in the Hospital. Things like a wife to her husband and a father to his son's body cremated rate - the rate had to wander too just for the sake of money. Kaalapatha development of Betul district headquarters in the city on January 8 during the tree cutting Dilip called young tree fell. Family members ever selling jewelry, so treat someone Dilip tried to take credit. Dilip despite eight days of treatment could not be any improvement in the condition and died on January 16 at noon by Dilip and family fell on the roar like. Turn came to take the corpse to the funeral Pdar hospital management refused to give the body. Dilip's death after the hospital management not consistent Guharoan Pasieza the family have become helpless. Around the figure reached only plead with the administrative head. Deceased wife of Dilip Malthi left his mother for six months to adopt the baby, father figure with a collector appealed to the Collectorate came Monday morning at 9, but here too he had to wait three hours. Malthi information to come in the morning collector was reached. After Hours Collector appealed to the Malthi heard Bajirao Gavai Pdar hospital manager on the phone immediately asked for the body. Collector appealed to the Malthi Pdar hospital after hearing the call from the manager Bajirao Gavai discussed. He said the money for the funeral the body can not stop. The claim will be the rule. They provide family members immediately asked for the body. Tribal Development Department after he left the endangered item Malthi funeral provided the sum of two thousand rupees.hmalapur resident contractor Parsaram Nagla Dilip fall in the hands but he gave two thousand rupees and 13 rupees a whole family was admitted to Dilip. Amravati Nagpur or go over to Dilip she was saying. Then there escaped from Parsaram contractor. Malthi Bai said was owed on the amount of wages. Pdar hospital management after the death of Dilip body for balance Rs 25 was denied. Father Sukhdev said first deposited Rs 10 for treatment and medicines had spent over 25 thousand. Now after his death, managing to release the body was demanding Rs 30. Later came to Rs 25. Now have come to plead to the collector. Hospital Medical Superintendent of the hospital management charges Dr. Rajeev Chaudhry said, "We made sure the pressure to recover the amount of treatment but not stopped dead. It went on Sunday without informing the deceased family. When a patient dies so often people make the excuse of not having money. Dr. Chowdhury said that the patient Antodaya card or a card from the poverty line do not support us. Directed the district administration on hospital food Pijaning victim of school children and injured children treated by falling power which did not amount to date. Treatment facility to provide up to Rs 20 Dayal treatment plan is initiated. This card was near SS is his poverty line card. Alkesh Arya said in a letter to legislators Simcaco, but when trouble came the moment the plan proved to be only out of action cards and letters. Betul collector of the developments being evasive answers. Pdar hospital, he said, a woman was not her husband's body? I just learned of this, the assistance given to women, told to get the body. They say that the situation seems to be inhuman or Puanga not say anything in this regard. Cooperation is the situation becomes. Claim is that it is paid at discounted levels. Maybe it happened before. Dilip's Hospital Parijno Walo the Pdarz the card will be shown and he will not see card. The development of the most embarrassing fact is that when the time for the body of the deceased family members were lost when a program Thace were thought Betul collector.

बड़े साहब बंगले में आराम फरमाते रहे और दलित मृतक के परिजन इलाज की राशि वसूलने के लिए रोकी गई लाश के लिए गुहार लगाते रहे

                        बड़े साहब बंगले में आराम फरमाते रहे और दलित मृतक के परिजन
                       इलाज की राशि वसूलने  के लिए रोकी गई लाश के लिए गुहार लगाते रहे
रामकिशोर पंवार , बैतूल। आदिवासी - दलितो के रहनुमा कहलाने वाले शिवराज के राज में एक गांव कोटवार को अपने जवान बेटे की लाश के लिए दर - दर भटकना पड़ा। उस गांव कोटवार के पास वह सब कुछ था जिसके चलते उसका इलाज पूरे प्रदेश के किसी भी प्रायवेट चिकित्सालय में नि:शुल्क हो सकता था लेकिन इलाज तो हुआ लेकिन इलाज का पैसा जमा न कर पाने के कारण उसकी लाश को एक नहीं बल्कि दो दिन तक रोकी रखी गई। बेचारा न्याय की गुहार लेकर जब जिले के दलित समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले मुखिया कलैक्टर साहब के आफिस और निवास के पास सुबह से लेकर दिन के पौने दो बजे तक बैठा रहा लेकिन न तो साहब बंगले से बाहर आये और न उनके किसी कर्मचारी ने इसकी जानकारी मिलने पर कोई पहल की। आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की भैंसदेही तहसील के ग्राम कास्या डोक्या के ग्राम कोटवार सुखदेव ने बताया कि उसके पुत्र दिलीप को हमलापुर डिपो में पेड़ काटते समय गिर जाने से गंभीर चोटें आई थी। दिलीप को इलाज के लिए जिला अस्पताल से पाढर अस्पताल में भर्ती किया था। दिलीप की इलाज के दौरान 16 जनवरी को मौत हो गई। सुखदेव ने बताया कि इलाज की राशि 35 हजार रूपए का भुगतान कर दिया। अस्पताल प्रबंधन 25 हजार रूपए की और मांग कर रहा है। गरीब होने के कारण पैसे नहीं देने पर पाढर अस्पताल प्रबंधन ने शव देने से इंकार कर दिया। दिलीप को जिला मुख्यालय बैतूल के क्षेत्रीय विधायक अलकेश आर्य की सिफारिश के बाद सीएमएचओ डीके कौशल द्वारा पाढर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विधायक की सिफारिश एवं गरीबी रेखा का कार्ड होने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने दिलीप को शव देने से इंकार कर देना प्रदेश सरकार की योजनाओं पर लग रहे पलीते का एक ज्वंलत उदाहरण है।
                बैतूल जैसे आदिवासी जिले में प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह के अत्योंदय कार्ड , बीपीएल कार्ड , दीनदयाल कार्ड का एक कड़वा सच जब सामने आया तो मानवता शर्मसार हो गई। जहां एक ओर जिले का एक भी पक्ष एवं विपक्ष का जनप्रतिनिधियों ने कलैक्टर कार्यालय आने के बाद भी उसकी ओर मुड़ कर देखने की भी जरूरत महसुस नहीं की। वहीं दुसरी ओर सेवा के नाम पर इलाज का दंभ भरने वाले अस्पतालों में व्यवसायिकता इस कदर हावी हो गई है कि उसने इलाज का खर्च न जमा करने पर मृतक की लाश को एक नहीं बल्कि पूरे दो दिन तक बंधक बना कर रखी रही। कहने को तो पाढऱ मिशनरी हास्पीटल पूरे देश में मानवता की सेवा की स्वंय को मिसाल बता कर देश - विदेश से करोड़ो रूपयों का अनुदान प्राप्त करता चला आ रहा है लेकिन इस हास्पीटल में मानवता के दर्शन भी नहीं होते। हालात ऐसे कि एक पत्नी को अपने पति और एक पिता को अपने बेटे की लाश का अंतिम संस्कार करने के लिए दर - दर भटकना पड़ा वह भी महज पैसों की खातिर। जिला मुख्यालय बैतूल के कालापाठा विकास नगर क्षेत्र में 8 जनवरी को पेड़ काटने के दौरान दिलीप नामक युवक पेड़ से गिर गया। परिवार के लोगों ने कभी गहने बेचकर, तो किसी से कर्ज लेकर दिलीप का इलाज कराने की कोशिश की। आठ दिनों के इलाज के बावजूद दिलीप की हालत में कोई सुधार नहीं हो सका और 16 जनवरी को दोपहर में दिलीप ने दम तोड़ दिया और परिजनों पर जैसे गाज गिर गई। अंतिम संस्कार करने लाश ले जाने की बारी आई तो पाढर अस्पताल प्रबंधन ने लाश देने से इंकार कर दिया। दिलीप की मौत के बाद लगातार गुहारों के बाद भी जब अस्पताल प्रबंधन नहीं पसीजा तो परिजन बेबस से हो गए। एकमात्र आस प्रशासनिक मुखिया के यहां गुहार लगाने पहुंच गए। मृतक दिलीप की पत्नि मालती बाई अपने छह माह की बच्ची को गोद में लिए सास, ससुर के साथ कलेक्टर के पास गुहार लगाने सोमवार की सुबह 9 बजे कलेक्टोरेट आ गई, लेकिन यहां भी उसे तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा। मालती के आने की सूचना सुबह ही कलेक्टर तक पहुंच गई थी। घंटों बाद कलेक्टर ने मालती की गुहार सुनी और पाढर अस्पताल के प्रबंधक बाजीराव गवई से फोन पर तुरंत शव देने को कहा। कलेक्टर ने मालती की गुहार सुनने के बाद पाढर अस्पताल के प्रबंधक बाजीराव गवई से फोन पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि पैसे के लिए लाश को अंतिम संस्कार करने के लिए नहीं रोक सकते हैं । इसका क्लेम शासन से दिया जाएगा। उन्होंने परिजनों को तुरंत लाश उपलब्ध कराने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने आदिवासी विकास विभाग के संकटापन्न मद से मालती बाई को अंतिम संस्कार के लिए दो हजार रुपए की राशि उपलब्ध कराई। हमलापुर निवासी ठेकेदार परसराम नागले ने दिलीप के गिरने पर उसने हाथ में दो हजार रुपए दिए थे और 13 सौ रुपए परिजनों ने मिलाकर दिलीप को भर्ती कराया था। वह दिलीप को नागपुर या अमरावती लेकर जाने का कह रहा था। इसके बाद ठेकेदार परसराम वहां से फरार हो गया। मालती बाई ने बताया कि उस पर मजदूरी की राशि बकाया थी। पाढर अस्पताल प्रबंधन ने दिलीप की मौत के बाद शव बकाया 25 हजार रुपए के लिए देने से इंकार कर दिया था। पिता सुखदेव ने बताया कि इलाज के लिए 10 हजार रुपए पहले जमा किए और दवाइयों पर 25 हजार खर्च कर चुके थे। अब उसकी मौत होने के बाद प्रबंधन शव देने 30 हजार रुपए मांग रहा था। बाद में 25 हजार रुपए तक आ गए । अब कलेक्टर के पास गुहार लगाने आए हैं। अस्पताल प्रबंधन पर लगे आरोपों पर अस्पताल के मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट डॉ. राजीव चौधरी ने कहा कि हमने इलाज की राशि वसूलने के लिए दबाव जरूर बनाया था लेकिन लाश नहीं रोकी। मृतक परिजन रविवार को बिना बताए यहां चले गए थे। जब किसी मरीज की मौत हो जाती है तो अक्सर लोग पैसा नहीं होने का बहाना बनाते हैं। डॉ. चौधरी ने कहा कि मरीज के पास अंत्योदय कार्ड या गरीबी रेखा का कार्ड होने से हमें कोई सपोर्ट नहीं मिलता। जिला प्रशासन के निर्देश पर अस्पताल में स्कूल में फूड पायजनिंग का शिकार हुए बच्चे और बिजली गिरने से घायल बच्चों का इलाज किया गया जिसकी राशि आज तक नहीं मिली। 20 हजार रुपए तक की इलाज सुविधा मुहैया कराने दीनदयाल उपचार योजना शुरू की है। यह कार्ड सुखदेव के पास था और उसका गरीबी रेखा कार्ड भी है। विधायक अलकेश आर्य ने सीएमएचओ को पत्र लिखकर कहा था, लेकिन जब मुसीबत के पल आए तो योजना का कार्ड व पत्र बेकाम ही साबित हुए। पूरे घटनाक्रम पर बैतूल कलेक्टर का गोलमाल जवाब रहा। उनका कहना था कि पाढर अस्पताल से एक महिला को उसके पति की लाश नहीं दी गई? इस बात का मुझे अभी पता चला है, महिला को सहायता राशि दी गई, लाश दिलाने का कह दिया है। उनका यह कहना था कि यह स्थिति अमानवीय लगती है या नहीं इस संबंध में कुछ नहीं कह पाऊंगा । ऐसी स्थिति बनती है तो सहयोग किया जाता है। जो क्लेम होता है उसे रियायती स्तर पर चुकाया जाता है। हो सकता है कि इसके पहले भी हुआ होगा। दिलीप के परिजनो ने पाढऱ हास्पीटल वालो को कार्ड दिखाया होगा और उन्होंने कार्ड नहीं देखा होगा। पूरे घटनाक्रम का सबसे शर्मनाक तथ्य यह है कि जिस समय जब मृतक के परिजन लाश के लिए भटक रहे थे तब बैतूल कलेक्टर एक कार्यक्रम में ठहाके लगा रहे थे।