Saturday, January 29, 2011

रेत से बुत न बना , ए मेरे अच्छे फनकार एक लहमें को ठहर , मैं तुझे पत्थर ला दूं।


रेत से बुत न बना , ए मेरे अच्छे फनकार एक लहमें को ठहर , मैं तुझे पत्थर ला दूं।

ताप्ती को लेकर हर कोई राजनीति और दुकानदारी करने लगता है।हर कोई ताप्ती को लेकर भाषण देने एवं ज्ञान बाटने में पीछे नहीं है। मुलताई के विधायक डां सुनीलम् ने तो बकायदा अपने लेटर हेड पर विधायक के पते में मुलतापी बैतूल छपवा लिया था लेकिन दस साल में वे ताप्ती के लिए दस सराहनीह कार्य भी नही करवा सके। मुलताई में आज भी ताप्ती की पहली पुलिया और ताप्ती का जन स्थान गंदगी और अतिक्रमण की मार का शिकार है। लोगो को उपदेश में मजा आता है। दुसरे के फटे पेंट को देख कर ताने मारने वाले यह क्यो भूल जाते है कि उसकी तो अंदर की चडड्ी तक फटी हुई दिखती चली आ रही है। मैं आज इस बात को दंभ और खंभ के साथ कह सकता हंू कि मैंने और मेरे परिवार जनो तथा मित्रो ने मात्र डेढ माह में जितने लोगो को ताप्ती के पावन जल और थल तथा दर्शन से जोडा उतना तो कोई भी इंसान आज तक नहीं जोड पाया है और न पायेगा। अगर वह ऐसा कार्य कर देगा तो मैं सदैव उसके चरणो के धूल से स्वंय का तिलक करने को तैयार हूं। मैं चाहता हूं कि तापती का नीर घर - घर तक पहुचे लेकिन ताप्ती का नीर तब घर - घर तक पहुंच पायेगा जब हम लोगो में ताप्ती के प्रति श्रद्धा - समपर्ण - अपनापन - लगाव - चाहत नहीं पैदा कर देते। हमारे छोटे से काम से लोगो की बौखलाहट ने आज एक पुणित कार्य में रोक लगा दी। गणेश भाई आज यदि ताप्ती हर शनिवार निरंतर ताप्ती स्थित शिवधाम बारहलिंग आते तो कौन सा पहाड टूट जाता। ताप्ती के जल के प्रति लोगो दुकानदारी तो देखिये कि वे लोगो से कहते फिरते कि लम्बी - चौडी भीड से ताप्ती का पानी गंदा हो गया। आज ताप्ती के प्रति अपनत्व का भाव रखने वाले चार लोग भी ताप्ती के पानी के मैले होने के प्रति चिंता रखते तो उन्हे चाहिये था कि वह रोज नहीं तो कम से कम सप्ताह में एक बार ताप्ती में स्नान कर ताप्ती नदी के किनारे फैलाई गई गंदगी को जला कर उसे राख से खाक मे परिवर्तित करते लेकिन यह सब वे क्यो करे क्योकि यह सब करने से उन्हे कौन जानेगा - पहचानेगा। ताप्ती के बहते और थमें पानी में लगी सिचाई की मोटरो को बंद करवाने वाले यदि ताप्ती के प्रति समपर्ण की थोडी सी भी अपनी नीयत को साफ रखे तो उनके लिए इससे बढिया क्या काम होगा कि वे मेरे साथ हर शनिवार और मंगलवार ताप्ती नदी के किसी भी घाट पर जमा हो रही गंदगी - पन्नी - प्लास्टीक और कपडे - कागज - कुडा - करकट को जलाने में सहयोग करे। मैं जो लिख रहा हूं वे सांई के विचार है भी या नहीं पर मैं ऐसा मानता हंू कि ‘‘ सांई ज्ञान उसे न दीजिये जो अज्ञानी हो......!’’ बैतूल जिले में बहने वाली ताप्ती के किनारे आज सुखते जा रहे है। आज रोंढा जो कि मेरी जन्मभूमि एवं मातृभूमि भी है वहां से अच्छी शुरूआत हुई जिसका मैं दिल खोल कर समर्थन करता हूं। आज इस बात को हम सभी को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा कि हम ताप्ती के जल को गुजरात की जीवन रेखा बनने में सहायक होने से रोके क्योकि ‘‘ हम प्यासे मरे और लोग पानी से नहाते जाये......!’’ यह सब नहीं चलेगा और न चलने दिया जायेगा। हमारी मां के आंचल के दुध से हमारे बचपन की भूख और तृष्णा शांत हो हम दुसरो के बचपन को पालने की सोची जाये। अब ऐसा कदापि नहीं होगा और न होने दिया जाये। पहले हमारा पेट भरे बाद मे दुसरे की चिंता और चिता के बारे में सोचने की नसीहत पर हमें एक जुट होना पडेगा। बैतूल जिले में पूरी ताप्ती दिन - प्रतिदिन मुलताई से लेकर जिले की सीमा तक सुखती जा रही है। हमें ताप्ती के गहरीकरण के प्रति नहीं बल्कि उसके बहाव को स्टाप डेम और जल रोको अभियान के तहत जहां - तहां पर जल संग्रहण स्थलो का निमार्ण कार्य करना होगा। ताप्ती के प्रति हमें अब अपनी नीति और रीति दोनो ही बदलनी होगी। अब हमारे साथ कंधा से कंधा मिला कर मौनी बाबा से लेकर गणेश बाबा को भी ताप्ती के जल को रोकने का भागीरथी प्रयास करना होगा। अब आज आवश्क्यता इस बात की आ पडी है कि बैतूल जिले में ताप्ती नीर को घर - घर बोतलो एवं पन्नी में न पहुंचा कर ऐसा अद्धितीय कार्य करना होगा कि स्वर्ग से रंजनीकांत गुप्ता की आत्मा भी हमारे कार्यो पर फूल बरसा सके। ताप्ती को जगह - जगह पर इतनी रोको और उसको अन्य नदियो से भी जोडना होगा ताकि ताप्ती का जल बैतूल जिले के गांव - गांव तक पहुंच सके। अब इस बात को भी सोचना होगा कि जब भोपाल के लोगो के लिए नर्मदा मैया भोपाल जा सकती है तो हमें तो चुल्लु भर पानी में डूब मरना चाहिये कि हम ताप्ती को अपने गांव - गली तक नहीं ला पा रहे है। बैतूल जिले के लोगो को तो ताप्ती के बहते पानी को स्वंय के पैसो से ऐसे सतलज की तरी नहर बना देनी चाहिये कि हमारी मां हमारे गांव - खेत और खलिहान से गुजरे और हम रोज उसका पावन जल पी सके। हमारे खेतो की - कुओ की प्यास बुझ जाये इसके लिए हमें भागीरथी प्रयास करना होगा। हम सभी को चाहिये कि हर हाल में हम इस बार उसी को मत दे जो कि इस बात का भरोसा - यकीन दिला सके कि वह नर्मदा जिस तरह भोपाल पहुंची है ठीक उसी तर्ज पर हमारी तापी हमारे घर - गांव - गौठान तक भले न पहुंचे लेकिन उसका जल भी जिले के बाहर लोगो के उपयोग में बाद में आये पहले हमारे काम में आये। आज नहीं तो कल मेरी इस कोशिस से यदि चार विद्धवान की जगह यदि मूर्ख व्यक्ति भी अपनी मूर्खता के बाद भी जुडता है तो मैं समझूगा कि मेरा जीवन सार्थक एवं सफल हुआ। मुझे किसी के प्रमाण पत्र की अभिनंदन की या ताप्तीरथी कहलाने की जरूरत नहीं ...... मैं तो ताप्ती मां का सपूत होने के नाते ऐसा काम करने का बीडा उठाना चाहता हू कि चार लोग मेरे साथ निकल पडे और कहे कि अब मां हमें प्यासा न रखो कुछ स्थान पर ठहरो और हमें अपने पावन जल से आंनदित करो। चलते - चलते एक फिल्मी तराना गुनगुना चाहता हूं कि उसको नहीं देख हमने कभी - लेकिन तेरी सूरत से अलग भला भगवान की सूरत क्या होगी.....। हे तापी मां हमें भगवान नही तेरी चाहत है ताकि हम अपना जीवन धन्य कर सके। एक बार फिर ताप्ती का जल रोको अभियान से जुडने का काम करे तथा अपने दिल और दिमाग कि किसी कोने में छुपे भागीरथ को सामने लाने का काम करे ताकि हम अपनी आदि गंगा को अपने जिले के हर गांव - खेत - गौठान - खलिहान - घर के आगन तक ला सके। जय ताप्ती माता रानी की।

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