Monday, January 17, 2011

बड़े साहब बंगले में आराम फरमाते रहे और दलित मृतक के परिजन इलाज की राशि वसूलने के लिए रोकी गई लाश के लिए गुहार लगाते रहे

                        बड़े साहब बंगले में आराम फरमाते रहे और दलित मृतक के परिजन
                       इलाज की राशि वसूलने  के लिए रोकी गई लाश के लिए गुहार लगाते रहे
रामकिशोर पंवार , बैतूल। आदिवासी - दलितो के रहनुमा कहलाने वाले शिवराज के राज में एक गांव कोटवार को अपने जवान बेटे की लाश के लिए दर - दर भटकना पड़ा। उस गांव कोटवार के पास वह सब कुछ था जिसके चलते उसका इलाज पूरे प्रदेश के किसी भी प्रायवेट चिकित्सालय में नि:शुल्क हो सकता था लेकिन इलाज तो हुआ लेकिन इलाज का पैसा जमा न कर पाने के कारण उसकी लाश को एक नहीं बल्कि दो दिन तक रोकी रखी गई। बेचारा न्याय की गुहार लेकर जब जिले के दलित समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले मुखिया कलैक्टर साहब के आफिस और निवास के पास सुबह से लेकर दिन के पौने दो बजे तक बैठा रहा लेकिन न तो साहब बंगले से बाहर आये और न उनके किसी कर्मचारी ने इसकी जानकारी मिलने पर कोई पहल की। आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले की भैंसदेही तहसील के ग्राम कास्या डोक्या के ग्राम कोटवार सुखदेव ने बताया कि उसके पुत्र दिलीप को हमलापुर डिपो में पेड़ काटते समय गिर जाने से गंभीर चोटें आई थी। दिलीप को इलाज के लिए जिला अस्पताल से पाढर अस्पताल में भर्ती किया था। दिलीप की इलाज के दौरान 16 जनवरी को मौत हो गई। सुखदेव ने बताया कि इलाज की राशि 35 हजार रूपए का भुगतान कर दिया। अस्पताल प्रबंधन 25 हजार रूपए की और मांग कर रहा है। गरीब होने के कारण पैसे नहीं देने पर पाढर अस्पताल प्रबंधन ने शव देने से इंकार कर दिया। दिलीप को जिला मुख्यालय बैतूल के क्षेत्रीय विधायक अलकेश आर्य की सिफारिश के बाद सीएमएचओ डीके कौशल द्वारा पाढर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विधायक की सिफारिश एवं गरीबी रेखा का कार्ड होने के बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने दिलीप को शव देने से इंकार कर देना प्रदेश सरकार की योजनाओं पर लग रहे पलीते का एक ज्वंलत उदाहरण है।
                बैतूल जैसे आदिवासी जिले में प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह के अत्योंदय कार्ड , बीपीएल कार्ड , दीनदयाल कार्ड का एक कड़वा सच जब सामने आया तो मानवता शर्मसार हो गई। जहां एक ओर जिले का एक भी पक्ष एवं विपक्ष का जनप्रतिनिधियों ने कलैक्टर कार्यालय आने के बाद भी उसकी ओर मुड़ कर देखने की भी जरूरत महसुस नहीं की। वहीं दुसरी ओर सेवा के नाम पर इलाज का दंभ भरने वाले अस्पतालों में व्यवसायिकता इस कदर हावी हो गई है कि उसने इलाज का खर्च न जमा करने पर मृतक की लाश को एक नहीं बल्कि पूरे दो दिन तक बंधक बना कर रखी रही। कहने को तो पाढऱ मिशनरी हास्पीटल पूरे देश में मानवता की सेवा की स्वंय को मिसाल बता कर देश - विदेश से करोड़ो रूपयों का अनुदान प्राप्त करता चला आ रहा है लेकिन इस हास्पीटल में मानवता के दर्शन भी नहीं होते। हालात ऐसे कि एक पत्नी को अपने पति और एक पिता को अपने बेटे की लाश का अंतिम संस्कार करने के लिए दर - दर भटकना पड़ा वह भी महज पैसों की खातिर। जिला मुख्यालय बैतूल के कालापाठा विकास नगर क्षेत्र में 8 जनवरी को पेड़ काटने के दौरान दिलीप नामक युवक पेड़ से गिर गया। परिवार के लोगों ने कभी गहने बेचकर, तो किसी से कर्ज लेकर दिलीप का इलाज कराने की कोशिश की। आठ दिनों के इलाज के बावजूद दिलीप की हालत में कोई सुधार नहीं हो सका और 16 जनवरी को दोपहर में दिलीप ने दम तोड़ दिया और परिजनों पर जैसे गाज गिर गई। अंतिम संस्कार करने लाश ले जाने की बारी आई तो पाढर अस्पताल प्रबंधन ने लाश देने से इंकार कर दिया। दिलीप की मौत के बाद लगातार गुहारों के बाद भी जब अस्पताल प्रबंधन नहीं पसीजा तो परिजन बेबस से हो गए। एकमात्र आस प्रशासनिक मुखिया के यहां गुहार लगाने पहुंच गए। मृतक दिलीप की पत्नि मालती बाई अपने छह माह की बच्ची को गोद में लिए सास, ससुर के साथ कलेक्टर के पास गुहार लगाने सोमवार की सुबह 9 बजे कलेक्टोरेट आ गई, लेकिन यहां भी उसे तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ा। मालती के आने की सूचना सुबह ही कलेक्टर तक पहुंच गई थी। घंटों बाद कलेक्टर ने मालती की गुहार सुनी और पाढर अस्पताल के प्रबंधक बाजीराव गवई से फोन पर तुरंत शव देने को कहा। कलेक्टर ने मालती की गुहार सुनने के बाद पाढर अस्पताल के प्रबंधक बाजीराव गवई से फोन पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि पैसे के लिए लाश को अंतिम संस्कार करने के लिए नहीं रोक सकते हैं । इसका क्लेम शासन से दिया जाएगा। उन्होंने परिजनों को तुरंत लाश उपलब्ध कराने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने आदिवासी विकास विभाग के संकटापन्न मद से मालती बाई को अंतिम संस्कार के लिए दो हजार रुपए की राशि उपलब्ध कराई। हमलापुर निवासी ठेकेदार परसराम नागले ने दिलीप के गिरने पर उसने हाथ में दो हजार रुपए दिए थे और 13 सौ रुपए परिजनों ने मिलाकर दिलीप को भर्ती कराया था। वह दिलीप को नागपुर या अमरावती लेकर जाने का कह रहा था। इसके बाद ठेकेदार परसराम वहां से फरार हो गया। मालती बाई ने बताया कि उस पर मजदूरी की राशि बकाया थी। पाढर अस्पताल प्रबंधन ने दिलीप की मौत के बाद शव बकाया 25 हजार रुपए के लिए देने से इंकार कर दिया था। पिता सुखदेव ने बताया कि इलाज के लिए 10 हजार रुपए पहले जमा किए और दवाइयों पर 25 हजार खर्च कर चुके थे। अब उसकी मौत होने के बाद प्रबंधन शव देने 30 हजार रुपए मांग रहा था। बाद में 25 हजार रुपए तक आ गए । अब कलेक्टर के पास गुहार लगाने आए हैं। अस्पताल प्रबंधन पर लगे आरोपों पर अस्पताल के मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट डॉ. राजीव चौधरी ने कहा कि हमने इलाज की राशि वसूलने के लिए दबाव जरूर बनाया था लेकिन लाश नहीं रोकी। मृतक परिजन रविवार को बिना बताए यहां चले गए थे। जब किसी मरीज की मौत हो जाती है तो अक्सर लोग पैसा नहीं होने का बहाना बनाते हैं। डॉ. चौधरी ने कहा कि मरीज के पास अंत्योदय कार्ड या गरीबी रेखा का कार्ड होने से हमें कोई सपोर्ट नहीं मिलता। जिला प्रशासन के निर्देश पर अस्पताल में स्कूल में फूड पायजनिंग का शिकार हुए बच्चे और बिजली गिरने से घायल बच्चों का इलाज किया गया जिसकी राशि आज तक नहीं मिली। 20 हजार रुपए तक की इलाज सुविधा मुहैया कराने दीनदयाल उपचार योजना शुरू की है। यह कार्ड सुखदेव के पास था और उसका गरीबी रेखा कार्ड भी है। विधायक अलकेश आर्य ने सीएमएचओ को पत्र लिखकर कहा था, लेकिन जब मुसीबत के पल आए तो योजना का कार्ड व पत्र बेकाम ही साबित हुए। पूरे घटनाक्रम पर बैतूल कलेक्टर का गोलमाल जवाब रहा। उनका कहना था कि पाढर अस्पताल से एक महिला को उसके पति की लाश नहीं दी गई? इस बात का मुझे अभी पता चला है, महिला को सहायता राशि दी गई, लाश दिलाने का कह दिया है। उनका यह कहना था कि यह स्थिति अमानवीय लगती है या नहीं इस संबंध में कुछ नहीं कह पाऊंगा । ऐसी स्थिति बनती है तो सहयोग किया जाता है। जो क्लेम होता है उसे रियायती स्तर पर चुकाया जाता है। हो सकता है कि इसके पहले भी हुआ होगा। दिलीप के परिजनो ने पाढऱ हास्पीटल वालो को कार्ड दिखाया होगा और उन्होंने कार्ड नहीं देखा होगा। पूरे घटनाक्रम का सबसे शर्मनाक तथ्य यह है कि जिस समय जब मृतक के परिजन लाश के लिए भटक रहे थे तब बैतूल कलेक्टर एक कार्यक्रम में ठहाके लगा रहे थे।

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