Saturday, January 29, 2011

गरूड एवं सफेद उल्लू के चक्कर में कौन किसे बना रहा है उल्लू .


बैतूल जिले में हर साल नवम्बर के आखरी एवं दिसम्बर
के प्रथम सप्ताह में मिले रहे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी के बच्चे
गरूड एवं सफेद उल्लू के चक्कर में कौन किसे बना रहा है उल्लू .....!
बैतूल। मध्यप्रदेष के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में मिल रहे दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के बच्चो को लेकर जबरदस्त वाद - विवाद छिड गया है। बीते सालो की तरह इस बार भी बेतूल जिले में नवम्बर - दिसम्बर माह में दुलर्भ प्रजाति के सफेद उल्लूओं की वजह से आस्था एवं श्रद्धा का ऐसा जन सैलाब उमडा हे कि देखते बनता है। बेतूल जिले में इस समय चारो ओर श्रीमद भागवत कथा - गरूड पुराण - रामकथा - व अन्य धार्मिक कार्यक्रमो का किसी न किसी गांव में आयोजन हो रहा है ऐसे में भगवान श्री हरि विष्णु के वाहन गरूड और उसके बच्चे का मिल जाना किसी धार्मिक जन सैलाब रूपी मेले एवं धार्मिक आस्था को के वेग को नहीं रोक पा रहा है। बीते तीन सालो से बैतूल जिले में शीतकालीन मौसम में अकसर जिले के विभिन्न ग्रामिण अंचलो से किसी ने किसी के ,ारा इस प्रकार की सनसनी खेज खबरो का खुलासा किया जाता रहा है कि जिले के फंला गांव में सफेद प्रजाति के उल्लूओं - गरूड के बच्चो का समूह उन्हे देखने को मिला है। बीते वर्ष 2007 में पहली बार मिले गरूड के बच्चो को लेकर जिले के सबसे बडे षासकीय जयवंती हक्सर महाविद्यालय के प्राणीषास्त्र के दो जानकारो की राय गिरगीट के रंगो की तरह बदलती दिखाई देने से ग्रामिण जनता का उल्लू बनना स्वभाविक है। जहां एक ओर राज्य सरकार के वन विभाग के एक आला अफसरो द्वारा  इस बात का दावा किया कि बैतूल जिले मे मिले दुर्लभ प्रजाति के बच्चे दर असल में सफेद उल्लू है। वही दुसरी ओर बैतूल जिला मुख्यालय पर स्थित षासकीय जयवंती हक्सर महाविद्यालय के प्राणी षास्त्र के जानकार डां एस डी डोंगरे ने भी अपने साक्षात्कार में दावा किया कि बैतूल जिले में ग्राम सोनोरा में मिले दुर्लभ प्रजाति के बच्चे गरूड ही है। डां डोंगरे का अध्ययन बताता है कि गरूड अकसर षीत कालीन क्षेत्र में रहता है। हिमालय की तराई एवं समुद्र के किनारे पर गरूड की प्रजाति पाई जाती है। किंग फीषर भी गरूड प्रजाति का होता है। डां डोंगरे की बात का बीते साल 19 दिसम्बर 2007 को जयवंती हक्सर महाविद्यालय के प्राणी षास्त्र के जानकार श्री पी.के. मिश्रा ने कुछ इस प्रकार समर्थन किया था कि बैतूल जिले के ग्राम सोनोरा में मिला दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के बच्चो का जोडा इगल - गरूड प्रजाति का है। श्री मिश्रा ने अपने कई अनुभवो के आधार पर कहा कि बैतूल जिले में मिले दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के बच्चे गरूड प्रजाति के है क्योकि गरूड की कई प्रजाति है। उस समय दोनो ही षासकीय जयवंती हक्सर महाविद्यालय के प्राणी षास्त्र के जानकारो ने उन पक्षियों को सफेद उल्लू नहीं बताया लेकिन जब सोनोरा के बाद हाल ही में आमला विकासखण्ड की ग्राम पंचायत रमली में मिले इन तथाकथित गरूड उर्फ सफेद उल्लूओं ने एक बार फिर बैतूल जिले की सोई धार्मिक आस्था में भूचाल ला दिया है। इसके पूर्व नवम्बर एवं दिसम्बर माह में बैतूल जिला मुख्यालय के हमलापुर तथा नेषनल हाइवे 59 ए बैतूल - इन्दौर मार्ग पर स्थित ग्राम देवगांव में मिले उन जैसे पक्षियोे के बच्चो को सफेद उल्लूओं की प्रजाति का तो कुछ के द्वारा गरूड प्रजाति का बताया जा रहा है। अब इस बार जब देवगांव के दुर्लभ प्रजाति के पक्षियो के बच्चो को गरूड की जगह उल्लू बताने से ग्रामिण इन सरकारी कालेज के प्राणी षास्त्रियों के जानकारो एवं वन विभाग के अफसरो की कथित ब्यानबाजी से स्तबध रह गये है। इन भोले भाले ग्रामिणो को आखिर कौन उल्लू बना रहा है यह समझ के परे की बात है। बैतूल जिले की आमला विकासखण्ड की बहुचर्चित ग्राम पंचायत रमली में नवम्बर माह के आखरी दिनो में तथा दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह में मिले सफेद उल्लूओं ने एक बार फिर बैतूल जिले की जनता को उल्लू बनाने में कोई कसर नहीं छोड रखी है। सोनोरा - हमलापुर - देवगांव के बाद अब रमली में मिले दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के बच्चो को आखिर अनपढ - अषिक्षित - श्रद्धालु ग्रामिण गरूड समझे या फिर सफेद उल्लू उनकी समझ के बाहर की बात है। इस समय पूरे बैतूल जिले में जबरदस्त बहस छिडी हुई है कि जिले के गांवो में मिलने वाले गरूड कहीं बैतूल जिले की सोई आस्था को जगाने का कोई उपाय तो नहीं है। कही कोई जिले की जनता की धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड तो नहीं कर रहा है।

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