Saturday, January 29, 2011

भारत देश में सर्कस एक मजाक बन कर रह गई ........!


भारत देश में सर्कस एक मजाक बन कर रह गई ........!
बैतूल। भारत में 1879 से सर्कसों की परम्परा चली आ रही हैं। छत्रे, परशुराम माली, कार्लेकर, देवल इन्ही की इसी परम्परा को वालावलकर निभा रहे हैं। उनके द्धारा संचालित दि ग्रेट रॉयल सर्कस की स्थापना 1906 में हुई थी और अब यह सर्कस सौ साल पूरी कर चुकी है। दि ग्रेट रॉयल सर्कस 1962 से 1989 तक 24 देशो में अपने प्रदर्शन करने के बाद स्वदेश में अपने कार्यक्रम दे रही है। ढाई सौ कलाकारो एवं कर्मचारियो के सांझा परिवारों को पालने वाली इस सर्कस में इस समय लगभग प्रतिदिन का खर्च लगभग पचास हजार रूपये आता है। इतनी बडी राशी का संकलन करना आज के इस दौर में कठीन कार्य है। सर्कस के प्रति लोगो का मोह धीरे - धीरे कम होने से अब लोग सर्कस देखने आना छोडते चले जा रहे है। कभी सर्कस में आने वाली भीड को देख कर फूले नहीं समाते कलाकारो का घटता मनोबल दिन - दिन प्रतिदिन इन कलाकारो के सामने रोजी - रोटी का बडा संकट लाने वाला है। आत शहरी हो या फिर ग्रामिण दर्शको को टेलीविजन और किक्रेट के मैचो ने अपने घरो में बांध रखा है। कभी सिनेमा के चलते दोहरी मार का शिकार बनी सर्कस अब टेलीविजन एवं सीडी प्लेयरो की बलि चढती जा रही है। सर्कस से जुडी केरल की मोनिका बताती है कि उसके पापा इसी सर्कस मे रिंग मास्टर्स थे जिसकी प्रेरणा से वह सर्कस की प्रमुख कलाकार है जिसने सर्कस को ही अपना घर संसार बना लिया है। साल में एक बार अपने पूरे परिवार से मिलने जाने वाली मोनिका सर्कस की जिदंगी में ही अपना सब कुछ न्यौछावर कर चुकी है। सुश्री मोनिका कहती है कि लोग पहले सर्कस में जंगली जानवरो विशेष कर शेर - चीते - भालू को देखने जाते थे,लेकिन अब तो राजस्थान के जहाज कहलाने वाले रेगिस्तानी जानवर ऊट और पालतू हाथियो के अकसर गांव - गांव तक मिल जाने से इन जानवरो के प्रति भी लोगो का रूझान कम हो गया है। सर्कस का काम देख रहे राजस्थान के प्रेम सिंह राठौड कहते है कि जबसे पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमति मेनका गांधी ने वन्य प्राणियो के प्रदर्शन पर रोक लगाई है तबसे लेकर आज तक सर्कसो में दिखने वाले जंगली जानवर भी जंगल की तरह सर्कस से भी गधे के सिंग की तरह गायब हो गये है। श्री राठौड कहते है कि ऐसे में बीस रूपये से लेंकर साठ रूपये के टिकट लेकर तीन घंटे तक दर्शको को बैठाल रखना तेढी खीर है। श्री राठौड इसे दर्शको की सर्कस के प्रति अरूचि का कारण भी मानते है। सर्कस के मालिको की मजबुरी है कि वह दर्शको को अपनी सर्कस में तीन घंटे तक रोके रखने के लिए अपने पास मौजूद महिला कलाकारो को भी कम कपडे में पेश कर उनकी देह को प्रदर्शित कर उससे दर्शको को बांधे रखे। आज भारत में मात्र 18 सर्कस ही बची है। अक्षय कुमार की फिल्म हेराफेरी में अपने करतब दिखा चुकी इस सर्कस ने कुछ साल पूर्व तक फ्रांस, सोमालिया, इथओपिका, इजिप्त, इराक, टांझानिया, सिंगापुर,मलेशिया, सिरिया, जॉर्डन कुवैत, लेबोनान, केनिया, युएई, सौदी अरबिया, मॉरिशस, सुदान, इंडोनेशिया जैसे कई देश में अपने प्रदर्शन  को प्रदर्शित किया। आज सर्कस जोकरो एवं जैमनास्टीक जैसे खेलो के अलावा मौत के कुये में मोटर साइकिल की रेस तथा खुबसुरत बालाओं के लोचदार बदन को देखने के लिए जानी जाती है। भारत में सर्कस में काम करने के बाद कई कलाकारो ने अपनी स्वंय की सर्कस तो बना ली लेकिन वे उसे ज्यादा समय तक जीवित नहीं रख सके। आज इस देश में सर्कस के कलाकारो के पास कोई दुसरा काम नहीं होने की वजह से वे अपनी जान को जोखिम में डाल कर ऐसे प्रदर्शन कर रहे है जिससे उसकी जान भी जा सकती है। देश में ऐसे कई अवसर इन सर्कसो में देखने को मिले जब सर्कस में जान जोखिम में डालने वाले कलाकरो को मौत की गोद में सोना पडा। बैतूल आई इस सर्कस में भी एक कलाकार दुर्घटना का शिकार हो गई जिसका नागपुर में इलाज चल रहा है। सर्कस में जरा सी भूल जान को जोखिम में डाल सकती है। राजकपुर की फिल्म मेरा नाम जोकर में राजकपुर ने एक जोकर की पीडा को दर्शाया था लेकिन पूरी सर्कस पीडा का दुसरा नाम है। बैतूल में आई सर्कस में यू तो निना पेनकिना लासो, हंटर और पक्षियों की कला पेश करती हैं। विदेशी कलाकरो को अनुबंधन पर लाने के बाद उनसेजो काम प्रस्तुत किये जाते है वह भी अपने आप में तारीफे काबिल है। रूस की महिला कलाकार दियोरा रशियन रस्सी की बेहतरीन कलाकारी पेश करती हैं। और रमिल, शाहनोजा भी एक बेहतरीन कलाकारा हैं जो रिंग डांस, रिंग बैलेंस जैसी कला भी अपने अनोखे अंदाज में पेश करती हैं। साथ में भारतीय कलाकारों का भी अच्छा मेल दिखायी देता हैं। सर्कस पर यूं तो पूरे विश्व का कब्जा है। अरबी देशो को छोड कर प्रायः विश्व के सभी कोने में सभी देशो की सर्कसे है। भारम एशिया का सबसे बडा महाद्धीप है इसलिए सर्कस को आज भी दर्शक मिल जाते है लेकिन उनके भरोसे पूरे दो - ढाई सौ लोगो का पेट पालना संभव भी नहीं है। श्री एम प्रभाकर सर्कस के प्रबंधक है उनके अनुसार भारत में केरल को छोड कर कोई भी राज्य सरकार सर्कस के कलाकारो को पेंशन जैसी सुविधा नहीं दे रहा है। प्रभाकर मानते है कि सर्कस एक प्रकार से जोखिम भरा खेल है लेकिन जोखिम तो घर से लेकर बाहर तक हर जगह है। हमें अपना और अपने परिवार का पेट पालना है तो जोखिम तो उठाना पडेगा ही। सर्कस के जोकर रामबाबू का मानना है कि यदि वह बौना नहीं होता तो जोकर नहीं बनता। लोगो को हसंाने वाला जोकर खुद  अकेले कोने में बैठ कर सिसकी लेता है। वह कहता है कि जोकर मैं बना नहीं हूं ईश्वर ने मुझे जोकर लोगो को हसंाने के लिए बनाया है। घर परिवार से कोसो दूर सर्कस में मौत के कुयें में मोटर साइकिल चलाने वाले दो कलाकार बताते है कि जिदंगी हादसो से भरी है। सबसे बडा हादसा दोपहर और रात की भूख है जो सब कुछ करवाती है। बैतूल के न्यू बैतूल ग्राऊण्ड में आई सर्कस के कलाकारो के अनुसार सरकार को चाहिये कि लोगो के स्वस्थ मनोरंजन के इस साधन को जिंदा रखने के लिए कोई ऐसा जनहित कार्य करे ताकि सर्कस और जोकर बरसो तक जीवित रह सके।


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